25 C
Lucknow
Online Latest News Hindi News , Bollywood News

वनधन योजनाः राजस्थान में ग्रामीण महिलाओं में उद्यमशीलता को बढ़ावा

देश-विदेश

वनधन जनजातीय स्टार्ट-अप और लघु वनोत्पाद (एमएफपी) पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणालीजंगल के उत्पादों को जमा करने वाली जनजातियों को उनके उत्पादों की बिक्री की सुविधा प्रदान करती है। इसके अलावा जनजातीय समूहों के जरिये मूल्य संवर्धन की सुविधा भी देती है। ये पहलें ट्राइफेड द्वारा की जा रही हैं। ट्राइफेड, जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधीन काम करता है और उसने इस चुनौतीपूर्ण समय में रोजगार सृजन द्वारा जनजातीयों के आर्थिक दबाव को दूर करने में अहम भूमिका निभाई है। कामयाबी की हमारी एक खास दास्तान है, जिसकी हाल में बहुत चर्चा रही है। वह दास्तान राजस्थान के एक वीडीवीके समूह से जुड़ी है।

राजस्थान में पिछले वर्ष 3019 वनधन विकास केंद्रों को 189 समूहों में शामिल किया गया था। ये समूह लगभग 57,292 लाभार्थियों की मदद कर रहे हैं। आज की तारीख तक वनधन विकास केंद्रों को 2224 वनधन विकास केंद्र समूहों में समेटा गया है। प्रत्येक समूह में 300 वनवासी हैं। पूरे देश में ट्राइफेड ने दो साल से भी कम समय में इनकी मंजूरी दी थी।

राजस्थान के इन समूहों में से एक समूह वनधन विकास केंद्र समूह, श्रीनाथ राजीविका, मगवास की एक शानदार दास्तान है।

A picture containing text, personDescription automatically generatedA group of people standing outsideDescription automatically generated with low confidence

A picture containing different, severalDescription automatically generated

अपनी दिग्गज उद्यमी श्रीमती मुगली बाई की जानदार रहनुमाई में, वीडीवीके समूह ने कम समय में ही हर्बल गुलाल की भारी मात्रा में बिक्री की। बताया जाता है कि 5,80,000 रुपये की बिक्री हुई।

उदयपुर में झाडोल के जनजातीय लोग इलाके के घने जंगलों से ताजा फूल जमा करते हैं। वे पलाश, कनेर, रांजका और गेंदा के फूल जमा करते हैं। जमा किये हुये फूलों को श्रीनाथ वनधन विकास केंद्र, मगवास ले जाया जाता है। फूलों को बड़े-बड़े बर्तनों में पानी में उबाला जाता है। यह प्रक्रिया दो से तीन घंटे चलती है, ताकि पानी में फूलों का रंग पूरी तरह उतर आये। यह रंग फूलों का स्वाभाविक रंग होता है। इसके बाद रंगीन पानी को छाना जाता है और उसमें मक्के का आटा मिलाया जाता है। इसमें गुलाब-जल मिलाकर उसे आटे के रूप में पीस लिया जाता है। जनजातीय लोग इसके बाद हाथ से शुद्ध किये हुये हर्बल गुलाल को सुखाते हैं और कोई कचरा आदि हो, तो उसे निकाल देते हैं। शुद्ध गुलाल को फिर आकर्षक पैकटों में बंद करके बेच देते हैं! इन पत्तियों से हर्बल गुलाल बनाने के काम में 600 से अधिक महिलायें लगी हैं।

      उद्यमशीलता की यह अनोखी दास्तान युगों पुरानी परिपाटी और परंपरा के बल पर चली आ रही है। यह इस बात का प्रमाण है कि वनधन योजना किस तरह जनजातीय आबादी को लाभ पहुंचा रही है।

      एक वनधन विकास केंद्र में 20 जनजातीय सदस्य होते हैं। ऐसे 15 वनधन विकास केंद्र मिलकर एक वनधन विकास केंद्र समूह बनाते हैं। वनधन विकास केंद्र समूह (वीडीवीकेसी), वनधन विकास केंद्रों को बिक्री, आजीविका और बाजार तक पहुंच और उद्यम अवसर प्रदान करते हैं। विदित हो कि 23 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के जंगलों के उत्पाद जमा करने वाले लगभग 6.67 जनजातियों को उद्यमिता का अवसर मिला है। कार्यक्रम की सफलता इस बात में देखी जा सकती है कि 50 लाख जनजातियों को पहले ही वनधन स्टार्ट-अप कार्यक्रमों का लाभ मिल चुका है।

      जनजातीय आबादी की आजीविका में सुधार लाना और वंचित व जोखिम वाले जनजातीय लोगों के जीवन को बेहतर बनाना ट्राइफेड का मिशन है।उम्मीद की जाती है कि वनधन योजना पहल के बल पर आने वाले दिनों में कामयाबी की ज्यादा से ज्यादा दास्तानें सुनने को मिलेंगी। इससे इससे ‘वोकल फॉर लोकल’और आत्मनिर्भर भारत की भावना को ताकत मिलेगी तथा जनजातीय लोगों की आजीविका, आय और जीवन में सुधार आयेगा।

Related posts

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More