नई दिल्ली: वाराणसी स्मार्ट सिटी ने स्मार्ट सिटी मिशन के तहत वाराणसी नगर के चुने हुए क्षेत्रों में सैनिटाइजर के छिड़काव के लिए चेन्नई स्थित एक कंपनी ‘गरुड़ एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड की सेवाएं ली हैं। लॉकडाउन अवधि के दौरान परिवहन के सीमित विकल्पों को देखते हुए, ये ड्रोन नागरिक उड्डयन मंत्रालय की विशेष अनुमति से एयर इंडिया कार्गो उड़ानों के जरिये चेन्नई से विशेष रूप से एयरलिफ्ट किए गए। दो ड्रोनों के साथ कुल सात सदस्यीय टीम को प्रचालनगत बनाया गया और ट्रायल रन 17 अप्रैल, 2020 को पूरा हो गया।
ड्रोनों के जरिये सैनिटाइजर के छिड़काव को जिला प्रशासन/मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा चिन्हित हॉटस्पॉटों एवं नियंत्रण क्षेत्रों के लिए प्राथमिकता दी जाती है। इसके बाद आइसोलेशन क्षेत्रों, क्वारांटाइन किए गए क्षेत्रों, आश्रय स्थलों एवं अन्य स्थान, जहां शारीरिक रूप से छिड़काव करना मुश्किल है, की बारी आती है। ड्रोन किस जगह तैनात किए जाएंगे, उसका फैसला वाराणसी नगर निगम के अधिकारियों द्वारा किया जाता है।
ड्रोन टीम पहले उस क्षेत्र का दौरा करती है जिसे सैनिटाइज करने के लिए चुना गया है और उस भूभाग, भवनों एवं आसपास के क्षेत्रों का त्वरित विजुअल सर्वे करती है तथा ड्रोन द्वारा अनुसरण की जाने वाली उड़ान मार्ग की रूपरेखा बनाती है। फिर ड्रोन को 1 प्रतिशत सोडियम हाइपोक्लोरइट (एनएओसीएल) से निर्मित कैमिकल सॉल्यूशन से भरा जाता है, फिर ड्रोन को कैलिब्रेट किया जाता है और तब वह उड़ान के लिए तैयार हो जाता है। इसके बाद सुनियोजित उड़ान पथ में अनुभवी ड्रोन पायलटों द्वारा एक रिमोट कंट्रोल उपकरण का उपयोग करते हुए ड्रोन को उड़ाया जाता है, साथ ही साथ इसके चार नोजलों के जरिये सैनिटाइजर का छिड़काव भी किया जाता है। प्रत्येक उड़ान (लगभग 15 से 20 मिनट तक चलने वाली) के बाद ड्रोन को कैमिकल भरने एवं बैट्री पैक को रिप्लेस करने के लिए वापस बुला लिया जाता है। इसके बाद ड्रोन को उड़ान/छिड़काव फिर से आरंभ करने के लिए दूसरे स्थान पर भेज दिया जाता है।
ड्रोन का उड़ान मार्ग और कवर किया गया क्षेत्र बैकएंड पर जीआईएस मैप के साथ हाथ में रखे जाने वाले एक उपकरण से नियंत्रित एवं रिकॉर्डेड रहता है जो रिमोट कंट्रोलर से प्लग्ड रहता है। ड्रोन प्रचालनों के लिए प्रयुक्त वेहिकल में जीपीएस और जीएसएम आधारित वायरलेस कैमरा फिट किया गया होता है जिसका उपयोग कर ड्रोन की पूरी आवाजाही और उनके प्रचालनों को काशी इंटीग्रेटेड कमांड एवं कंट्रोल सेंटर से केंद्रीय तरीके से मोनिटर किया जाता है जिसे अब कोविड-19 वॉर रूम में तबदील कर दिया गया है। प्रत्येक नामित स्थान पर ड्रोन प्रचालनों से पहले एवं बाद में सैनिटरी इंस्पेक्टर एवं टीम के अन्य सदस्य नोडल अधिकारी को रिपोर्ट करते हैं।
उपकरण की पूंजीगत लागत संबंधित एजेंसी द्वारा प्रदान की जाती है और नगर प्रशासन को प्रचालनगत व्ययों (सेवा लागतों एवं रसायन लागतों) पर आने वाले खर्च का वहन करना पड़ा। प्रचालन की औसत लागत प्रति दिन प्रति ड्रोन 8000 रुपये से लेकर 12 हजार रुपये आती है और यह एकड़ के हिसाब से क्षेत्र पर निर्भर करती है।
ड्रोन मानव रहित वाहन हैं जो हेलिकॉप्टर की तरह उड़ सकते हैं और विशेष रूप से डिजाइन किए गए रिमोट कंट्रोल का उपयोग करते हुए प्रशिक्षित कार्मिकों द्वारा उन्हें प्रचालित किया जा सकता है। ड्रोन, जिन्हें विशेष रूप से कृषि उपयोग के लिए कीटनाशकों के छिड़काव के लिए डिजाइन किया गया था, का उपयोग अब कोविड-19 महामारी की स्थिति के दौरान क्वारांटाइन किए गए क्षेत्रों एवं आइसोलेशन वार्डों के आसपास डिस्इंफेक्टैंट तरल छिड़कने के लिए किया जा रहा है।