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वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली: पठानों पर गोली चलाने से मना किया तो अंग्रजों ने दी थी काला पानी

उत्तराखंड

देहरादून: आज की इस अवसरवादी राजनीति ने व्यक्तिगत चरित्र और नैतिकता का मापदंड खो दिया है. इन हालातों में हमें उत्तराखंड के उस सपूत की याद आती है जिसने न केवल व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठ कर देश भक्ति की मिशाल पेश की, बल्कि आजादी के बाद भी समाजवाद के उस आदर्श को कायम किये रखा जो अवसरवादिता से कोसों दूर है.
जी, हां बात कर रहे हैं पेशावर कांड के महानायक वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली की, जिनका आज (25 दिसंबर) जन्मदिन है. भारत मां के इस सच्चे सपूत ने जो मिशालें पेश की, वह इतिहास में हमेशा अमर रहेंगी.
ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ पहले खुले सैनिक विद्रोह करने वाले वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसम्बर 1891 को हुआ था. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गढ़वाल राइफल में भर्ती हुए वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में जंगे आजादी की लडाई लड़ रहे निहत्थों पठानों पर जब ब्रिटिश हुकुमत के गोली चलाने के आदेश को मानने से इंकार कर दिया तो उन्हें इसकी सजा काला पानी के रूप में चुकानी पड़ी.
ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ पहले खुले सैनिक विद्रोह कर उनकी चूलें हिलाने वाले यह वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ही है कि जिनका देश की आजादी में जितना बड़ा योगदान रहा, उतना ही उसके बाद भी यहां के नागरिकों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने के रूप में रहा.
आज के इस दौर में जब अवसरवादी राजनीति ने अपना चरित्र और नैतिकता खो दी है उस समय भारत माता का यह लाल याद आ रहा है. सड़कों पर भोपू लेकर असली समाजवाद की लड़ाई लडने वाला चन्द्र सिंह गढ़वाली ही था जिसने कांग्रेस की लालबत्ती में घूमने के वजाय सड़कों पर आम आदमी के लिए लड़ने की चुनौती स्वीकार कर मरते दम तक अवसरवादिता को हावी नहीं होने दिया.
वरिष्ठ पत्रकार और वीर चन्द्र सिंग गढ़वाली को करीब से जनाने वाले विपिन उनियाल की यदि मानें को अपने अदम्य साहस, वीरता के साथ ही अवसरवादिता से कोसों मिल दूर रहने वाले यह वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ही थे कि जो आज भी पूरे विश्व में सिर्फ एक मात्र ऐसे शख्स है जो तीन-तीन देशों के इतिहास में अमर है.
यह वह शख्सियत थे जिन्होंने आजादी के बाद भी चैन की सांस नहीं ली और ताउम्र सड़कों पर घूमकर सामाजिक कुरुतियों और विसंगतियों के खिलाफ अकेले ही लड़ाई छेड़े रखी. इसी के चलते पूरे देश में शायद ही कोई ऐसा रहा हो जिसने वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली का सम्मान न किया हो.
1 अक्टूबर 1979 को भारत मां का लाल हमेशा के लिए इस दुनिया को विदा कह गया, लेकिन जो आदर्श और मिशाल वह पेश कर गए वह आज भी हमारे बीच जिंदा है.
आज की अवसरवादी राजनीति में व्यक्तिगत चरित्र और नैतिकता का पतन हो रहा है लेकिन यदि वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली से प्रेरणा ली जाय तो आज भी आदर्श समाजवाद की मिशाल पेश की जा सकती है.

ब्यूरो चीफ
कविन्द्र पयाल
देहरादून उत्तराखण्ड

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