उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज इस बात पर जोर देकर कहा कि “एक प्रगतिशील, आधुनिक भारत में निश्चित रूप से एक ऐसा पुलिस बल होना चाहिए जो लोगों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को पूरा करे।” उन्होंने पुलिस बलों में सुधारों को लागू करने के लिए फिर से जोर देने की अपील की।
पूर्व आईपीएस अधिकारी श्री प्रकाश सिंह द्वारा लिखित पुस्तक “द स्ट्रगल फॉर पुलिस रिफार्म्स इन इंडिया” का विमोचन करने के बाद उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने साइबर अपराधों तथा आर्थिक अपराधों जिसके लिए अत्याधुनिक और अक्सर सीमा पार प्रकृति के कारण विशेष जांच विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, जैसे 21वीं सदी के अपराधों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए हमारे पुलिसकर्मियों के कौशल को उन्नत करने की आवश्यकता पर बल दिया।
उपराष्ट्रपति ने विशेष रूप से उन मुद्दों, जिसमें पुलिस विभागों में भारी संख्या में रिक्त पदों को भरना और आधुनिक युग की पुलिसिंग की आवश्यकताओं के अनुरूप पुलिस के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना शामिल है और जिनसे युद्ध स्तर पर निपटने की आवश्यकता है, को रेखांकित किया। उन्होंने जमीनी स्तर पर पुलिस बल को विशेष रूप से मजबूत करने का आह्वान किया, जो ज्यादातर मामलों में सबसे पहले कदम उठाने वाले होते हैं। श्री नायडु ने पुलिस कर्मियों की आवास सुविधाओं में सुधार लाए जाने की भी इच्छा व्यक्त की।
इस बात पर जोर देते हुए कि आम आदमी के प्रति पुलिसकर्मियों का व्यवहार विनम्र और मित्रतापूर्ण होना चाहिए, उपराष्ट्रपति ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से इस संबंध में उदाहरण प्रस्तुत करने की अपील की। उन्होंने यह भी कहा कि, “पुलिस स्टेशन जाना ऐसे व्यक्ति के लिए परेशानी मुक्त अनुभव होना चाहिए जो वहां मदद मांगने जाता है। इसके लिए सुधार करने वाली पहली चीज पुलिस का रवैया है- उन्हें खुले विचारों वाला, संवेदनशील और प्रत्येक नागरिक की चिंताओं के प्रति ग्रहणशील होना चाहिए।”
यह उल्लेख करते हुए कि पुलिस सुधार एक अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है, उपराष्ट्रपति ने कहा कि हालांकि पिछले कुछ वर्षों में सुधारों को लागू करने के कई प्रयास हुए हैं, लेकिन अपेक्षित सीमा तक प्रगति नहीं हुई है। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों के अनुसार, सुधारों को समुचित रूप से लागू करने के लिए राज्यों में राजनीतिक इच्छाशक्ति की अपील की।
श्री नायडु ने देश में कानून-व्यवस्था कायम रखने और भारत के आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए पुलिस सुधारों की आवश्यकता को भी दोहराया। उन्होंने कहा कि प्रगति के लिए पहली शर्त शांति है।
भारत में पुलिस व्यवस्था के इतिहास का स्मरण करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि 1857 के विद्रोह के बाद, अंग्रेजों ने अपने साम्राज्यवादी हितों को बनाए रखने के मुख्य उद्देश्य के साथ एक पुलिस बल का निर्माण किया और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, मुख्य रूप से स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारियों के उत्पीड़न व दमन के लिए पुलिस का उपयोग किया। उन्होंने कहा, “आजादी के बाद, पुलिस व्यवस्था में व्यापक सुधारों की आवश्यकता थी। दुर्भाग्य से, हम इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में पिछड़ गए हैं।”
श्री नायडु ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद के वर्षों में, मूल्यों और प्रथाओं में महत्वपूर्ण क्षरण के साथ पुलिस बल का तेजी से राजनीतिकरण किया गया है। उन्होंने कहा कि लोगों के लिए अनुकूल बल के रूप में देखे जाने के बजाय, इसे अभिजात्य और सत्ता के अनुकूल होने के रूप में देखा गया।
कुख्यात आपातकाल के दौरान पुलिस बल के दुरुपयोग की घटनाओं का उल्लेख करते हुए, श्री नायडु ने कहा कि इसका इस्तेमाल मानवाधिकारों का दमन करने और सत्तारूढ़ सरकार के सभी राजनीतिक विरोधियों सहित हजारों लोगों को गिरफ्तार करने के लिए किया गया था। उन्होंने स्मरण किया कि इसके बाद, 1977 में एक राष्ट्रीय पुलिस आयोग की स्थापना की गई, जिसने पुलिस सुधारों के लिए विस्तृत बहुआयामी प्रस्तावों के साथ रिपोर्ट प्रस्तुत की।
बहरहाल, उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे पुलिस बलों में व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर सुधार लाने के मामले में बहुत अधिक प्रगति नहीं हुई है।
2006 के पुलिस सुधारों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को कार्यान्वित न करने पर निराशा जताते हुए, श्री नायडु ने कहा कि पुलिसिंग राज्य का विषय है और राज्यों को ही पुलिस सुधारों की दिशा में इस अभियान का नेतृत्व करना है। उन्होंने कहा, “मुझे उम्मीद है कि देश में बहुत आवश्यक पुलिस सुधारों को लागू करने के लिए सभी राज्य और केंद्र ‘टीम इंडिया’ की सच्ची भावना के साथ एकजुट होंगे।”
श्री नायडु ने बेहतर पुलिस व्यवस्था की दिशा में भारत सरकार द्वारा की गई कई पहलों, जिसमें छोटे अपराधों और उल्लंघनों को अपराध से मुक्त करने की एक परियोजना एवं कैदियों की पहचान अधिनियम, 1920- एक ऐसा कानून जिसे 100 साल पहले पारित किया गया था, में संशोधन का प्रस्ताव शामिल है, पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने पुलिस को एक स्मार्ट बल- जो सख्त और संवेदनशील, आधुनिक व गतिशील, सतर्क और जवाबदेह, विश्वसनीय एवं उत्तरदायी, तकनीक अनुकूल और प्रशिक्षित बल का प्रतीक है- बनाने की प्रधानमंत्री की अपील की भी सराहना की।
समाज में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस व्यवस्था के महत्व को रेखांकित करते हुए, श्री नायडु ने पुलिस के दिन-प्रतिदिन के कामकाज में प्रौद्योगिकी के अधिक से अधिक उपयोग को उच्च प्राथमिकता देने के लिए सरकार की सराहना की। उन्होंने विशेष रूप से पुलिस के पेशेवर और नैतिक मानकों में सुधार के लिए आंतरिक सुधार लाने, प्रौद्योगिकी अपनाने, डिजिटल परिवर्तन और प्रशिक्षण के जरिए एक स्मार्ट भारतीय पुलिस के दृष्टिकोण को साकार करने के प्रयासों के लिए भारतीय पुलिस फाउंडेशन की भी प्रशंसा की।
राजनीति, विधानमंडलों और न्यायपालिका सहित सार्वजनिक जीवन के सभी क्षेत्रों में सुधार की अपील करते हुए, श्री नायडु ने व्यवस्था में लोगों का विश्वास बनाए रखने के लिए नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के विरुद्ध आपराधिक मामलों के त्वरित निपटान की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच अनैतिक दलबदल को हतोत्साहित करने के लिए दलबदल विरोधी कानून में सुधार का भी आह्वान किया।
देश में पुलिस सुधारों के ध्येय को आगे बढ़ाने के लिए लेखक श्री सिंह की प्रशंसा करते हुए, उपराष्ट्रपति ने उनकी पुस्तक को उल्लेखनीय उदाहरण बताया कि एक अधिकारी अपने अकेले प्रयासों से क्या उपलब्धि अर्जित कर सकता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि देश में एक लोकोन्मुखी पुलिस बल का उद्भाव होगा जो कानून के शासन को बनाये रखने को सर्वोच्च महत्व देगा।
इस अवसर पर, श्री नायडु ने देश के विभिन्न हिस्सों में अपराधियों, आतंकवादियों, चरमपंथियों और सभी प्रकार के अराजक तत्वों से जूझते हुए कर्तव्य की राह में अपने प्राणों की आहुति देने वाले पुलिसकर्मियों को भी श्रद्धांजलि दी।
कार्यक्रम के दौरान बीएसएफ के पूर्व महानिदेशक श्री प्रकाश सिंह, इंडिया टुडे के कार्यकारी संपादक श्री कौशिक डेका, कॉमन कॉज के निदेशक श्री विपुल मुद्गल, भारतीय पुलिस फाउंडेशन के अध्यक्ष श्री एन. रामचंद्रन, रूपा प्रकाशन के प्रबंध निदेशक श्री कपिश मेहरा, सेवानिवृत्त आईपीएस श्री एन. के. सिंह तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।