उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज सभी हितधारकों से किसानों की आय बढ़ाने के लिए भारत में कपास की उपज और उत्पादकता को बेहतर बनाने के लिए ठोस उपाय करने का आह्वान किया। दुनिया के अन्य प्रमुख कपास उत्पादकों की तुलना में भारत में कपास की कम उपज के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए, श्री नायडु ने कहा कि श्रेष्ठ प्रक्रियाओं को अपनाकर बेहतर अनुसंधान के माध्यम से किसानों का मार्ग दर्शन करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।
श्री नायडु ने भारतीय सूती वस्त्रों की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने तथा हमारी पारंपरिक ताकत का लाभ उठाने, आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने एवं कपास उद्योग में एक वैश्विक दिग्गज के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत बनाने का आह्वान किया।
देश में कृषि के बाद दूसरे सबसे बड़े नियोक्ता के रूप में कपड़ा क्षेत्र के महत्व को देखते हुए, श्री नायडु ने इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कृषि उत्पादकता को बेहतर बनाने, मशीनीकरण बढ़ाने, कपड़ा श्रमिकों के कौशल में बढ़ोतरी करने और छोटी फर्मों को संभालने पर जोर दिया। श्री नायडु ने विशेष कपास किस्मों जैसे एक्स्ट्रा-लॉन्ग स्टेपल (ईएलएस) कपास और जैविक कपास में विविधता लाने का भी सुझाव दिया।
श्री नायडु ने आज विज्ञान भवन, नई दिल्ली से सीआईटीआई-सीडीआरए स्वर्ण जयंती समारोह का उद्घाटन किया। कंफ्रेडेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (सीआईटीआई) देश में कपड़ा क्षेत्र का एक प्रमुख उद्योग संघ है और कपास विकास और अनुसंधान संघ (सीडीआरए) सीआईटीआई की एक विस्तार शाखा है, जो कपास क्षेत्र में विभिन्न बीज विकास और विस्तार गतिविधियों का संचालन करती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में कपास के महत्व का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि कपास का हमारी सभ्यतागत विरासत में महान प्रतीकात्मक मूल्य भी है। उन्होंने स्मरण किया कि कपास ने ‘स्वदेशी आंदोलन’ से शुरुआत करते हुए हमारे स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि समाज के सभी वर्गों को जोड़ते हुए कपास ब्रिटिश राज के विरुद्ध लड़ने में लोगों के लिए एक सबसे प्रमुख कारकों में से एक थी।
श्री नायडु ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि दुनिया में सबसे बड़ा कपास उत्पादक (23 प्रतिशत) होने और कपास उत्पादन में सबसे अधिक (विश्व क्षेत्र का 39 प्रतिशत) रकबा होने के बावजूद, भारत में प्रति हेक्टेयर उपज 460 किलोग्राम लिंट प्रति हेक्टेयर से भी कम रही है, जबकि विश्व में औसतन उपज 800 किलोग्राम लिंट प्रति हेक्टेयर है। इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने रोपण घनत्व बेहतर बनाने, कपास की खेती का मशीनीकरण करने और सस्य विज्ञान (एग्रोनमी) अनुसंधान पर जोर देने का आह्वान किया।
श्री नायडु ने कहा कि कपास पर पहले प्रौद्योगिकी मिशन के लाभों को स्मरण करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि एक उन्नयन प्रारूप में मिशन को नवीनीकृत करने की जरूरत है। हमें अपनी बीज प्रौद्योगिकी को बेहतर बनाने, उपज बढ़ाने, वैश्विक श्रेष्ठ प्रक्रियाओं को अपनाने, स्वच्छ और उच्च गुणवत्ता वाली कपास का उत्पादन करने तथा किसानों की आय को बेहतर बनाने के लिए कपास को बेहतर ब्रांड बनाने की आवश्यकता है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि कॉटन यार्न में भारत की मजबूत वैश्विक स्थिति मौजूद है इसलिए कपड़े और परिधान में देश की प्रतिस्पर्धा में सुधार करना आवश्यक है। उन्होंने छोटी फर्मों को संभालने और टेक्सटाइल कामगारों के कौशल में वृद्धि करने का आह्वान किया ताकि इस क्षेत्र को बढ़ावा मिल सके। उन्होंने कहा कि संशोधित-प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (ए-टीयूएफएस) और समर्थ (कपड़ा क्षेत्र में क्षमता निर्माण की योजना) जैसी सरकारी योजनाओं का उद्देश्य इन उद्देश्यों को अर्जित करना है।
पारंपरिक वस्त्रों की निर्यात प्रतिस्पर्धा में आए भारत के सुधार को देखते हुए श्री नायडु ने कहा कि हम तकनीकी टेक्सटाइल जैसे उभरते हुए क्षेत्रों को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों में पूरी दुनिया में तेजी से मांग बढ़ने की संभावना है।
इस अवसर पर श्री नायडु ने सीआईटीआई-सीडीआरए परियोजना क्षेत्रों में उत्कृष्ट कपास वैज्ञानिकों और किसानों को पुरस्कार प्रदान किए। उन्होंने इस कार्यक्रम में एक कॉफी टेबल बुक – ‘मिलेनियल शेड्स ऑफ कॉटन’ का भी विमोचन किया।
श्री पीयूष गोयल, केन्द्रीय वस्त्र, वाणिज्य, उद्योग, उपभोक्ता मामले और खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री, श्री टी. राजकुमार, अध्यक्ष, सीआईटीआई, श्री पी. डी. पटोदिया, अध्यक्ष, सीआईटीआई-सीडीआरए की कपास पर स्थायी समिति, श्री राकेश मेहरा, डिप्टी चेयरमैन, सीआईटीआई, श्री उपेंद्र प्रसाद सिंह, सचिव, कपड़ा मंत्रालय, श्री प्रेम मलिक, सह-अध्यक्ष, सीआईटीआई सीडीआरए की कपास पर स्थायी समिति और अन्य गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित थे।