उपराष्ट्रपति श्री एम. वैंकेया नायडू ने जयवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए इंसानी प्रतिक्रिया को बाल-केंद्रित बनाने की जरूरत बताया। इस वैश्विक समस्या का सामना करने के लिए बनाई जा रही राष्ट्रीय नीतियों, कानूनों और योजना दस्तावेजों में बाल अधिकारों को समाहित करने के प्रयासों पर जोर दिया।
उपराष्ट्रपति ने अपने विचार एक ऑनलाइन वेबिनार को संबोधित करते हुए रखे। ‘बच्चों के साथ जलवायु संसद’ नाम से इस वेबिनार को विश्व बाल दिवस के अवसर पर सांसदों के समूह ने बच्चों के लिए आयोजित किया था। इस आयोजन का उद्देश्य सांसदों और बच्चों के बीच में जलवायु परिवर्तन के महत्वपूर्ण मुद्दे पर संवाद कायम करना है।
इस बात को स्वीकारते हुए कि आज की सदी के बच्चे पिछली सदी के बच्चों से ज्यादा सजग औऱ जागरूक हैं, उपराष्ट्रपति ने जलवायु परिवर्तन पर संवाद में बच्चों को शामिल करने की बात कही। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों पर विद्यालयों और जमीनी स्तर पर बच्चों को जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे आगे चलकर बदलाव के दूत बन सकें।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा आने वाले वक्त में हर साल जलवायु परिवर्तन के चलते लाखों लोगों की जान जाएगी और इसमें इससे प्रभावित बच्चों की तादाद बेहद ज्यादा होगी। बीमारी, चोट और कुपोषण से ग्रसित बच्चे इसकी चपेट में सबसे ज्यादा आएंगे। उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि दुनिया भर की आबादी का एक चौथाई हिस्सा 0-14 साल के बच्चों का है जो आबादी का सबसे बड़ा और जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित समहू है।
जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम में आने वाले बदलावों से सूखे, बाढ़, तूफान और जंगली आग आदि विपदाओं की ओर इशारा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि लगातार हो रहे कार्बन उत्सर्जन से हरितघर प्रभाव बढ़ा है और इससे पृथ्वी के पर्यावरण को बेहद नुकसान हुआ है। अब इसी का परिणाम है कि धरती पर मानव आस्तित्व खतरे में है।
वैश्विक तापमान के बढ़ने पर चिंता जताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि दुनिया में अब वैक्टर-बॉर्न (मक्खी, मच्छरों औऱ कीटों से) बीमारियों का प्रकोप बढ़ा है और भविष्य में दुनिया की खाद्यान संपदा को इससे खतरा है जो हमें भूख और कुपोषण की ओर ले जा सकता है। इससे भी दुनिया के बच्चे ही सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।
बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों और आपदाओं का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुपोषण, विद्यालयों का बंद होना, बाल मजदूरी में बढ़ोतरी और मनोवैज्ञानिक रोगों की चपेट बढ़ना इसके संभावित परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने कहा,”इनका असर देश के गरीब और मूलभूत सुविधाओं से बंचित बच्चों पर और भी भयानक होगा।”
अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उनका बचपन साफ हवा और स्वस्थ पर्यावरण में बीता है और कोई भी बच्चा इससे वंचित नहीं रहना चाहिए।
मानव जीवन की निरंतरता को बनाए रखने की जरूरत पर जोर देते हुए श्री नायडू ने कहा कि हमें विकास और पर्यावरण में एक संतुलन बनाना होगा। हमें कम होते प्राकृतिक संसाधनों को बचाना होगा ताकि आने वाली पीढ़ियों को संभाला जा सके।
उपराष्ट्रपति ने जानकारों के इस मत का समर्थन किया कि इंसान के पास एक दशक का वक्त बचा है जब वो पर्यावरण संरक्षण के कदम उठा सकता है। उसके बाद इसके घातक दुष्परिणामों का सामना करने का वक्त होगा। उन्होंने बच्चों के लिए एक स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण बचाने के लिए विभिन्न हितधारकों, नीतिनिर्माताओं, अविभावकों और बुजुर्गों को एक साथ आने का आह्वान किया ताकि इस विकट समस्या का समाधान ढूंढा जा सके। श्री नायडू ने कहा, “हम कुछ न करके अपने भविष्य को खतरे में नहीं डाल सकते।”
इस दिशा में उन्होंने सरकार के विभिन्न प्रयासों जैसे पेरिस पर्यावरण समझौता, नवीनीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा और कार्बन उत्सर्जन को कम करने की सराहना की।
श्री नायडू ने प्लास्टिक प्रदूषण को रेखांकित किया जिसका 50 फीसदी हिस्सा एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक का है और जिससे समुद्री जीवन को हानि हो रही है। इससे मानव खाद्य श्रृंखला भी प्रभावित हो रही है। उन्होंने प्रधानमंत्री के उस आह्वान की याद दिलाई जिसमें 2022 तक भारत को सिंगल-यूज प्लास्टिक से मुक्त करने का प्रण लिया गया है।
बच्चों के लिए एक साफ और सुरक्षित दुनिया बनाने का निश्चय करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का सीधा असर बच्चों के जीवित रहने, बढ़ने और मुश्किलों में भी डटे रहने की क्षमता पर सीधा खतरा है। उन्होंने कहा कि बच्चे स्वयं सहकर्मियों, अभिभावकों और समाज के सहयोग से बदलाव लाने वाले बन सकते हैं। उन्होंने कहा, “यदि आप बच्चों के साथ चलते हैं, तो आप समाज के साथ चलते हैं।” उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन का उदाहरण दिया जिसमें देश के बच्चों ने बदलाव के दूत की भूमिका अदा की है।
श्री नायडू ने एक व्यक्ति के जीवन में ‘प्रकृति’ और ‘संस्कृति’ के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हमें प्रकृति के साथ दोस्ताना व्यवहार करना चाहिए और अपनी संस्कृति पर गर्व महसूस करना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमारे पूर्वजों ने हमें ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ जैसे महान सभ्यतावादी मूल्य दिए हैं।उन्होंने सभी को उसका अनुसरण करने का आह्वान भी किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस मूल्य प्रणाली को खत्म करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
श्री नायडू ने केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी की भारतीय महिलाओं और बच्चों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए सराहना की। उन्होंने संसद सदस्य श्रीमती वंदना चव्हाण की भी सराहना की जो बच्चों की संसद के जरिए उनके अधिकारों के मुद्दों को उठाती हैं।
इस वर्चुअल कार्यक्रम में केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी, सांसद श्रीमती वंदना चव्हाण, बच्चों के लिए सांसद समूह की संयोजक डॉ. यास्मीन अली हक, भारत के लिए यूनिसेफ के प्रतिनिधि, कई सांसद, बाल अधिकार कार्यकर्ता और बच्चों ने भाग लिया।