उपराष्ट्रपति, श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज युवाओं से समाज में जरूरतमंद और उपेक्षित वर्गों की मदद के लिए नियमित रूप से कुछ समय समर्पित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि ‘संकट में मदद के लिए हाथ बढ़ाने से बड़ी संतुष्टि और खुशी कुछ भी नहीं है। ‘बांटें और देखरेख करें’ हमारी सभ्यता का मूल मंत्र है’।
श्री नायडू ने नई दिल्ली में एक गैर-लाभकारी सामाजिक सेवा संगठन के क्षेत्रीय केन्द्र राष्ट्रीय सेवा समिति (आरएएसएस) के लिए ‘सेवा संस्थान’ भवन का उद्घाटन किया। सभा को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि हर किसी को उस समुदाय की जरूरतों के लिए सजग रहना चाहिए जिसमें वह रह रहा है और मदद के लिए हाथ बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने आगे जोर देकर कहा कि यह बड़ी संस्थाओं और विशेष रूप से संपन्न वर्गों की जिम्मेदारी है कि वे अपने संसाधनों का उपयोग करें और ग्रामीण भारत में सेवा-उन्मुख कार्यक्रम शुरू करें। श्री नायडू का कहना था कि अपनी सेवा गतिविधियों में उन्हें महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य, युवाओं के कौशल विकास और किसानों के कल्याण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने पिछड़े क्षेत्रों में उपेक्षित समुदायों के बीच आरएएसएस के प्रयासों की सराहना की और महामारी के चरम के दौरान उनके योगदान को दर्ज किया। श्री नायडू ने पद्म पुरस्कार विजेता, आरएएसएस के संस्थापक स्वर्गीय श्री मुनीरत्नम नायडू के प्रयासों को याद किया और उन्हें “भाव की दृष्टि से एक सच्चा गांधीवादी” कहा। उन्होंने कहा कि अन्य संगठनों को भी गरीबी, निरक्षरता को खत्म करने और महिलाओं और कमजोर वर्गों के खिलाफ अत्याचार जैसी विभिन्न सामाजिक बुराइयों से लड़ने में सरकारों के प्रयासों में योगदान देना चाहिए।
इस अवसर पर आरएएसएस के उपाध्यक्ष श्री के. चिरंजीवी, आरएएसएस के महासचिव श्री एस. वेंकटरत्नम और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।