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उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने एक संघर्षविहीन, न्यायसंगत विश्व व्यवस्था के लिए प्रबुद्ध वैश्विक नेतृत्व की अपील की

देश-विदेश

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने शांति और टिकाऊ विकास पर आधारित एक संघर्ष मुक्त विश्व व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए एक प्रबुद्ध वैश्विक नेतृत्व का आह्वान किया है और जोर देकर कहा कि बौद्ध धर्म ऐसे रूपांतरण को बढ़ावा देता है। उन्होंने बल देकर कहा कि बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों का पालन लोगों के मस्तिष्क को मुक्त कर सकता है और बहुत वांछित सकारात्मक नेतृत्व प्रदान कर सकता है जो एक न्यायसंगत और उत्तरदायी विश्व व्यवस्था के साथ-साथ के अलावा समस्याग्रस्त मानवता का उद्धार कर सकता है।

श्री नायडू ने वियतनाम के उपराष्ट्रपति के निमंत्रण पर आज वियतनाम के हा नामा प्रांत के ताम चुग पगोडा में वेसक के 16 वें संयुक्त राष्ट्र दिवस पर अपने मुख्य संबोधन में बौद्ध धर्म के गुणों और वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने ” वैश्विक नेतृत्व के प्रति बौद्ध दृष्टिकोण और स्थायी समाजों के लिए साझा जिम्मेदारियां” विषयवस्तु पर चर्चा की। इसके प्रतिभागियों में वियतनाम के प्रधानमंत्री श्री गुयेन जुआन फुच, राष्ट्रीय वियतनाम बौद्ध संघ के अध्यक्ष और वैसाक समारोह 2019 के संयुक्त राष्ट्र दिवस के अध्यक्ष डॉ. थिक थिएन नहोन और कई देशों के 1600 से अधिक प्रमुख बौद्ध प्रतिभागी शामिल में थे।

“वेसाक ’भगवान बुद्ध के जन्म, ज्ञान और परिनिर्वाण का प्रतीक है, जिनके उपदेशों ने पिछले 2,500 वर्षों में दुनिया भर के लोगों को प्रभावित किया है।

श्री नायडू ने कहा, “सदाचारी व्यवहार, ज्ञान, करुणा और भ्रातृत्व और तृष्णा (लालच) को कम करने का बौद्ध दृष्टिकोण एक नई विश्व व्यवस्था के ढाँचे की बुनियाद प्रदान करता है जहां हिंसा और संघर्ष को न्यूनतम किया जाता है और प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट किये  बिना विकास जन्म लेता है। उन्होंने बुद्ध के उपदेशों से प्रेरित कलिंग युद्ध के बाद निर्मम अशोक से  धार्मिक अशोक में रूपांतरण का उल्लेख किया।

उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि चरमपंथी स्थितियों से बचने तथा बुद्ध द्वारा सिखाए गए ’मध्यम मार्ग’ को अपनाने से सत्य की प्राप्ति होती है जो हमें संघर्ष से बचने, विभिन्न दृष्टिकोणों के मेल-मिलाप और आम सहमति प्राप्त करने की ओर ले जाता है। उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि “यह व्यक्ति को कट्टरता, हठधर्मिता और उग्रपंथ से दूर रखता है और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए आवश्यक जीवन के अधिक संतुलित दृष्टिकोण की ओर ले जाता है। बौद्ध धर्म कट्टरता और धार्मिक अतिवाद की समकालीन बुराइयों का प्रतिकार करता है।

श्री नायडू ने कहा कि संघर्ष की उत्पत्ति की जड़ें व्यक्ति के मस्तिष्क से उत्पन्न घृणा हिंसा के विचार में निहित हैं और आतंकवाद के बढ़ते खतरे इस विनाशकारी भावना का प्रकटीकरण हैं। श्री नायडू ने कहा “घृणा की विचारधाराओं के समर्थकों को विचारहीन मृत्यु और विनाश से बचने के लिए रचनात्मक रूप से संलग्न होने की आवश्यकता है और बुद्ध के अनुसार शांति से बढ़कर कोई आनंद नहीं है” ।

वैश्विक नेतृत्व द्वारा सामना की जा रही समकालीन चुनौतियों का उल्लेख करते हुए, श्री नायडू ने कहा कि शांति और स्थायी विकास आपस में जुड़े हुए हैं और वे एक-दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने विश्व के नेताओं से आग्रह किया कि वे करुणा और ज्ञान के आधार पर संवाद, सद्भाव और न्याय को बढ़ावा देने के लिए साथ मिलकर काम करें। सीमित प्राकृतिक संसाधनों को देखते हुए स्थायी समाज केवल टिकाऊ उपभोग और उत्पादन के माध्यम से ही संभव है।

उपराष्ट्रपति ने महसूस किया कि पूरे मानव इतिहास में अंधाधुंध महत्वाकांक्षा और अतार्किक घृणा और क्रोध के तत्वों की प्रधानता रही है और उन्होंने रक्त और आँसू की कई दुखद कहानियां लिखी हैं। बुद्ध जैसे दूरदर्शी लोगों ने ही कष्टमय मानवता को समझदारी से चलने का रास्ता दिखाया है। उन्होंने कहा कि भारत का दृष्टिकोण विश्व को एक बड़े परिवार के रूप में मानने का रहा है और उसके स्वप्न शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के विषय पर बुने गए हैं।

इस अवसर पर म्यांमार के राष्ट्रपति श्री विन म्यिंट, नेपाल के प्रधानमंत्री श्री के.पी. शर्मा ओली, राष्ट्रीय वियतनाम बौद्ध संघ के सबसे आदरणीय सुप्रीम पैट्रिआर्क, वियतनाम की नेशनल असेंबली की अध्यक्ष सुश्री गुयेन थी किम नगन, भूटान के राष्ट्रीय परिषद के अध्यक्ष श्री टाशी दोरजी और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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