लखनऊ: विधान सभा की नवगठित पुस्तकालय समिति का उद्घाटन करते हुए श्री दीक्षित ने कहा कि यह देश का सबसे समृद्ध पुस्तकालय है। भारतीय संस्कृति और परम्परा में पुस्तकों का प्रमुख स्थान रहा है। उन्होंने प्राचीन काल के नालंदा तथा तक्षशिला विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों में संग्रहीत पुस्तकों के बारे में चर्चा की और कहा कि यहाॅं पर हमारे ज्ञान और विज्ञान का अपुल भण्डार रहा है। विदेशी जिज्ञासु भी यहां आकर अपने ज्ञान की प्यास बुझाते रहे हैं। उन्होंने पुस्तकों के महत्व की चर्चा करते हुए कहा कि पुस्तकें हमारी मित्र व प्रमुख मार्गदर्शक है। वे ज्ञान-विज्ञान के साथ हमारे चित्त में रासायनिक परिवर्तन का कार्य करती है। पुस्तक हमारे अतःकरण और चित्त को झकझोर देती हैं। पुस्तकों का आदर और उन्हें पूज्यनीय मानना हमें हमारी सांस्कृतिक विरासत से मिला है। उन्होंने बताया कि प्रकारान्तर में पुराने विधायकों की बहुत बड़ी संख्या पुस्तकालय में पढ़ने के लिए आती थी। होड़ लगती थी। सदन में गुणवत्ता पूर्ण सारवान् होती थी। उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष श्री हृदय नारायण दीक्षित ने विधान सभा पुस्तकालय में शोधार्थियों के लिए कतिपय नियम बनाये जाने का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि उक्त पुस्तकालय को आधुनिकीकृत करते हुए ई-लाइब्रेरी बनाया जाय।
श्री दीक्षित ने कहा कि विधान सभा के पुस्तकालय में पुस्तकों का विपुल भण्डार है। यह पुस्कालय वर्ष 1921 में स्थापित हुआ था। वर्ष 1938 में तत्कालीन अध्यक्ष, विधान सभा द्वारा पुस्तकालय समिति का गठन किया गया। पहले इसमें नौ सदस्य होते थे। वर्ष 1952 में पुर्नगठित कर 25 सदस्य नामित किये गये। उन्होंने इस अवसर पर विधायकों को उद्बोधित करते हुए कहा कि उन्हें अधिक-से-अधिक संख्या में पुस्तकालय में जाकर विभिन्न अवसरों पर होने वाली चर्चाओं में भाग लेने के लिए शोध एवं संदर्भ अधिकारियों का सहयोग लेकर गुणवत्तापूर्वक बहस में सहभागी होना चाहिए। श्री दीक्षित ने विधायकों को उद्बोधित करते हुए कहा कि अधिक से अधिक संख्या में पुस्तकालय में जाकर वहां पर उपलब्ध करायी जा रही सुविधाओं का उपयोग करना चाहिए।
प्रमुख सचिव विधान सभा श्री प्रदीप दुबे ने समिति में कहा कि विधान पुस्तकालय उत्तर भारत के वृहद् एवं महत्वपूर्ण पुस्तकालयों में से एक है। इसमें लगभग तीन लाख पुस्तकें हंै। हिन्दी की पुस्तकों की संख्या लगभग एक लाख, अंग्रेजी की पुस्तकों की संख्या लगभग एक लाख पाँच हजार, उर्दू की पुस्तकें लगभग पचास हजार एवं संस्कृत की पुस्तकें लगभग पाँच हजार हैं। इसके अतिरिक्त प्रमुख सचिव द्वारा यह भी अवगत कराया गया है कि पुस्तकालय में वर्ष 1893 एवं 1894 से विधायिका की हस्तलिखित एवं प्रकाशित कार्यवाहियां उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त वर्ष 1921 से उत्तर प्रदेश लेजिस्लेटिव कौंसिल एवं वर्ष 1937 से उत्तर प्रदेश विधान सभा की कार्यवाहियां उपलब्ध हैं। पुस्तकालय में पुराने गजेटियर एवं उत्तर प्रदेश सरकार के गजट उपलब्ध हैं। विधान पुस्तकालय का आॅटोमेशन एवं डिजिटाइजेशन कराया गया है। सम्पूर्ण पुस्तकों का विवरण ‘लिबर्सिस‘ नामक साॅफ्टवेयर पैकेज में उपलब्ध है। पुस्तकालय देश की समस्त विधायिकाओं में अपेक्षाकृत स्तरीय पुस्तकालय है, माननीय सदस्यों के उपयोगार्थ समस्त सुविधायें उपलब्ध हैं।
इस बैठक में श्री वासुदेव यादव, मा0 सदस्य विधान परिषद, श्री राम फेरन पाण्डेय, मा0 सदस्य विधान सभा व अन्य मा0 सदस्यगण तथा श्री प्रदीप दुबे, प्रमुख सचिव, विधान सभा एवं पुस्तकालय के पुस्तकाध्यक्ष सहित अन्य अधिकारीगण भी उपस्थित रहे।