नई दिल्ली: भारतीय विधि आयोग 11 जुलाई, 2015 को इंडिया हैबिटेट सेन्टर, नई दिल्ली में मृत्यु दंड पर एकदिवसीय विचार सभा का आयोजन कर रहा है। इस विचार सभा का उद्घाटन श्री गोपाल कृष्ण गांधी करेंगे। इस सभा में न्यायपालिका, बार, शिक्षा, मीडिया, राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन की महान हस्तियों का एक चुनिंदा समूह मृत्युदंड के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा एवं विचार विमर्श करने के लिए एकत्र होगा।
व्यापक विचार विमर्श में सहायता प्रदान करने के लिए इस विचार सभा को गोलमेज के रूप में आयोजित किया जा रहा है। सभी भागीदार इस आयोजन में पूरे दिन भाग लेंगे। प्रत्येक सत्र आमंत्रित वक्ताओं के संक्षिप्त वक्तव्य से शुरू होगा। इसके बाद सभी भागीदार अपने विचार व्यक्त कर सकेंगे। भारतीय समाज की प्रमुख हस्तियों के अलावा इस विचार सभा में प्रोफेसर रोजर हूड, प्रोफेसर एमेरिटस ऑफ क्रिमिनोलॉजी एंड रिसर्च एसोसिएट, सेन्टर फॉर क्रिमिनोलॉजी, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी भी भाग लेंगे।
विचार सभा में चार प्रमुख विषयों पर विचार विमर्श किया जाएगा, जो इस प्रकार हैं :-
- मनमानी और भेदभाव – क्या मृत्युदंड मनमर्जी से लागू किया जाता है? इसे कैसे रोका जा सकता है या दूर किया जा सकता है। क्या मृत्युदंड में गरीब और कमजोर लोगों के खिलाफ भेदभाव बरता जाता है।
- आपराधिक न्याय प्रणाली की स्थिति- पुलिस जांच-पड़ताल प्रक्रियाओं, न्यायपालिका और जेल प्रणालियों सहित आपराधिक न्याय प्रणाली के सामने क्या चुनौतियां हैं। निष्पक्ष,पक्षपात रहित और त्रुटिहीन मृत्युदंड देने लिए इस प्रणाली को कैसे सुधारा जा सकता है।
- मृत्युदंड के दंडात्मक उद्देश्य – मृत्युदंड से किस उद्देश्य की पूर्ति होती है। मृत्युदंड देने के इसी उद्देश्य को बदलने के लिए क्या विकल्प अपनाये जा सकते हैं।
- आगे बढ़ने की राह – कायम रखना, सुधार करना, समाप्त करना – भारत की संवैधानिक और अंतर्राष्ट्रीय विधि प्रतिबद्धताओं को देखते हुए क्या मृत्युदंड को इसके वर्तमान या संशोधित स्वरूप में कायम रखा जाना चाहिए?
इस विचार सभा के भागीदार समाज के सभी क्षेत्रों के हितधारकों का प्रतिनिधित्व करेंगे। इनमें प्रतिष्ठित न्यायाधीश, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) प्रभा श्रीदेवन, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एस.बी. सिन्हा, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) होसबिट सुरेश, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) के.चंद्रू और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राजेन्द्र सच्चर, राजनीतिक नेता जैसे वृंदा करात, मनीष तिवारी, शशि थरूर, मजीद मेनन, कनिमोझी, वरूण गांधी और आशीष खेतान शामिल हैं। पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह भी इस सभा में भाग लेंगे। सामाजिक कार्यकर्ता ऊषा रामनाथन वर्तमान और पूर्व पुलिस अधिकारी जैसे जुलियो रिबेरो, डी.पी. कार्तिकेयन, शंकर सेन, पी.एम. नायर, चमनलाल, मीरन सी.बोरवंकर भी इसमें शामिल होंगे। के.टी.एस. तुलसी, टी.आर. अंध्यारूजिना, युग चौधरी, संजय हेगड़े, कोलिन गोंजाल्विस और दुष्यंत दवे जैसे नामी वकील भी इसमें शामिल होंगे। इस क्षेत्र में काम कर रही एनजीओ जैसे एसीएचआर,एसएएचआरडीसी और सीएचआरआई के प्रतिनिधि भी इसमें भाग लेंगे। संजय मित्तल, सिद्धार्थ वर्दराजन, वी.वेंकटेशन, प्रवीण स्वामी और राजदीप सर देसाई जैसी मीडिया हस्तियां भी इसमें भाग लेंगी।
विचार सभा से एक दिन पूर्व विधि आयोग इंडिया इंटरनेशनल सेन्टर, नई दिल्ली में प्रोफेसर रोजर हूड का एक व्याख्यान आयोजित करायेगा। प्रोफेसर हूड वर्तमान में एमेरिटस ऑफ क्रिमिनोलॉजी एंड रिसर्च एसोसिएट, सेन्टर फॉर क्रिमिनोलॉजी, ऑल साउल्स कॉलेज ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफसर हैं। वे ”मृत्युदंड का वैश्विक उन्मूलन, एक मानव अधिकार अनिवार्यता” विषय पर अपने विचार रखेंगे और विचार सभा में भी भाग लेंगे।
यह उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने संतोष कुमार सतीश भूषण बरियार बनाम महाराष्ट्र और शंकर किशन राव खाड़े बनाम महाराष्ट्र मामले में यह सुझाव दिया था कि विधि आयोग को भारत में मृत्युदंड का अध्ययन करना चाहिए और इस विषय पर नवीनतम और सुविज्ञ वार्ता और बहस आयोजित करनी चाहिए। मई, 2014 में आयोग ने परामर्श पत्र जारी करके इस विषय पर जनता की टिप्पणियां आमंत्रित की थी। इस पत्र के जवाब में प्राप्त टिप्पणियों पर आगे विचार विमर्श करने के लिए यह विचार सभा आयोजित की जा रही है। इस विचार विमर्श के दौरान निर्धारित विचारों से इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट तैयार करने में आयोग को मदद मिलेगी।
मृत्युदंड का वर्तमान कानून बचन सिंह बनाम भारत सरकार (1980) के मामले में निर्धारित किया गया था, जब उच्चतम न्यायालय ने मृत्युदंड की वैधानिकता को सही ठहराया था। हालांकि न्यायालय ने इस दंड में मनमर्जी को कम करने के लिए इसे दुर्लभों में दुर्लभतम् मामले में ही लागू करने के लिए कहा था। इस मामले में अपने निर्णय पर पहुंचने के लिए न्यायालय ने विधि आयोग की 35वीं रिपोर्ट, भारत और विदेशों में दिये गये पूर्व फैसलों और समकालीन स्कॉलरशिप पर भरोसा किया था। विधि आयोग की जिस 35वीं रिपोर्ट पर न्यायालय में बचन सिंह मामले में भरोसा जताया था, उस पर भी पुन: विचार विमर्श किये जाने की जरूरत है, क्योंकि यह रिपोर्ट 1963 में प्रस्तुत की गई थी। इस प्रकार दंड प्रक्रिया 1973 की संहिता के ढांचे के साथ-साथ भारत के सामाजिक–राजनैतिक और कानूनी परिदृश्य में अन्य परिवर्तनों के साथ मृत्युदंड के ढांचे की ओवरहालिंग करने की जरूरत है।
बचन सिंह मामले के 35 वर्षों के बाद कानूनी परिदृश्य में भी काफी बदलाव आया है। वर्ष 1980 में जब बचन सिंह के मामले का निर्णय हुआ था, केवल 10 देशों ने सभी अपराधों के लिए मृत्युदंड की सजा समाप्त की थी। उसके बाद से दुनिया के लगभग दो तिहाई देशों ने कानून या व्यवहार में मृत्युदंड को समाप्त कर दिया है। 98 देशों ने तो सभी अपराधों के लिए मृत्युदंड समाप्त कर दिया है। 7 देशों ने सामान्य अपराधों के लिए इसे समाप्त कर दिया है तथा 35 देशों में मौत की सजा के खिलाफ प्रभावी स्थगन लागू किया है। अंतर्राष्ट्रीय अपराधिक कानून में नरसंहार और मानवता के विरूद्ध अपराध और युद्ध अपराधों जैसे गंभीर और जघन्य अपराधों के लिए मृत्युदंड समाप्त कर दिया है। हाल ही के मामलों में उच्चतम न्यायालय ने यह पाया है कि दुर्लभतम् सिद्धांत के बावजूद मृत्युदंड की सजा मनमाने ढंग से जारी है। संतोष बरियार बनाम महाराष्ट्र राज्य (2009) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह पाया कि कम से कम 15 व्यक्तियों को गलत तरीके से दंड दिया गया था। संगीत बनाम महाराष्ट्र राज्य (2013) मामले में न्यायालय ने यह माना है कि 5 मामलों में गलत सजा लागू की गई थी और यह निर्णय लेने में असमर्थता थी कि क्या यह मामला भारत के मृत्युदंड विधिशास्त्र की अनिश्चितताओं के कारण मृत्युदंड लागू करने के लिए उचित था। जिन देशों में मृत्युदंड समाप्त कर दिया गया है, वहां भी अनुभवजन्य अनुसंधान ने मृत्युदंड के संभावित निवारक प्रभावों को विवादित कर दिया है। भारत और विदेशों में आये इन परिवर्तनों ने मृत्युदंड की संवैधानिकता और वांछनीयता के प्रश्नों पर पुन: विचार करने के लिए इस सभा को उचित अवसर बना दिया है।