मुरैना: मध्य प्रदेश के मुरैना के शनि पर्वत पर स्थित त्रेतायुगीन शनि मंदिर पर देश के कोने-कोने से दर्शन करने आते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की शनिदेव के प्रति असीम आस्था है। श्रद्धालु शनिदेव से यहां सुख समृद्धि और शांति के लिए आराधना करने आते हैं। 15 मई को शनि जयंती पर यहां एक महोत्सव जैसा माहौल था। शनि जयंती के दिन शनि देव की पूजन करना एक संयोग भी माना जाता है। शनि देव सौर मंडल का सबसे महत्वपूर्ण गृह हैं। जो व्यक्ति के कर्म अनुसार अच्छे बुरे कर्म फल के निर्णायक हैं। शनि को मृत्युलोक का न्यायाधीश माना गया है। इसलिए भी शनिदेव की आराधना बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है।
इसलिए कठोर तपस्या की थी शनिदेव ने
पुराणों के अनुसार सूर्यदेव की दूसरी पत्नी छाया के गर्भ से जन्मे शनि के श्याम रंग को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छाया पर आरोप लगाते हुए शनि को अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया। इस कारण शनिदेव अपने पिता सूर्य से शत्रुभाव रखने लगे। उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर अनेक शक्तियां प्राप्त कीं। सभी ग्रहों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया, यमराज शनिदेव के भाई और यमुना बहन हैं। देश में विख्यात मुरैना का त्रेता युगीन शनि मंदिर से ही शनि शिंगणापुर महाराष्ट्र में 1817 के आसपास शिला से शनिदेव की स्थापना की गयी।
इंदौर: माता अहिल्या की नगरी इंदौर में शनि देव का प्राचीन मंदिर है। शहर के बीचोंबीच जूनि इंदौर में यह स्थित यह मंदिर करीब 300 साल पुराना है। इस मंदिर के बारे में एक सच्ची कहानी है कि यहां के अंधे पुजारी को शनि देव ने प्रसन्न होकर आंखें दी थीं।
शनि शिंगणापुर: शनि देव के तीर्थ स्थल के रूप में महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर में विराजे शनिदेव का अलह ही महत्व बताया जाता है। यहां पर शनि देव तो हैं लेकिन मंदिर नहीं, शनि देव पेड़ की छाया में विराजे हैं। इस गांव में लोगों को चोरों का डर नहीं होता, शनि देव रखवाली करते हैं, इसी वजह से लोग घरों में दरवाजा नहीं लगाते हैं।
शनिश्चरा मंदिर ग्वालियर: ग्वालियर में शनि देव का प्रसिद्ध शनिश्चरा मंदिर है। कहा जाता हैं कि हनुमानजी का लंका से फेंका हुआ अलौकिक शनि देव का पिंड यहां पर है। इस वजह से यहां शनिदेव विराजे हैं।
-कमल सिंघी