नई दिल्लीः उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि हमें शास्त्रीय भारतीय कला के रूपों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। श्री वेंकैया नायडू आज केरल के गुरुवयूर में प्राचीन नृत्य नाटिका ‘अष्टपदियत्तम’ को पुनर्जीवित करने के समारोह का उद्घाटन कर रहे थे। ‘अष्टपदियत्तम’ 12वीं शताब्दी के कवि जयदेव द्वारा लिखित गीत गोविंद है। इस अवसर पर केरल के राज्यपाल न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) पी शतशिवम तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि यद्यपि देश ने अपनी कला विरासतों को संरक्षित रखा है और पालन पोषण किया है लेकिन दुर्भाग्य से कुछ शास्त्रीय भारतीय कला के रूप अनदेखी की अवस्था में हैं और धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। हमें इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति को जारी रहने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अपनी सांस्कृतिक जड़ों के कारण हम सतत हैं, हमारा जीवन सम्पन्न हुआ है और हमारा समाज अधिक मानवीय और सभ्य बना है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि ‘अष्टपदियत्तम’ को पुनर्जीवित करना गड़े खजाने को बाहर निकालने जैसा है और मूर्छित पौधे को पानी देने जैसा है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह नृत्य नाटिका अपने पुराने गौरव के साथ उसी तरह पुनर्जीवित की जा रही है जिस तरह जयदेव चाहते थे। उन्होंने कहा कि नृत्य नाटिका के पुनर्जीवन में मौलिक वेशभूषा, संगीत और मुद्राओं के साथ पूरा न्याय किया जा रहा है।
गीत गोविंदम को यादगार साहित्यिक कृति बताते हुए उपराष्ट्रपति ने मेट्रो मैन ई श्रीधरन में नेतृत्व में चलाए जा रहे श्री गुरुवयुरप्पन धर्मकला समुच्यम ट्रस्ट की सराहना की।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें प्राचीन कला के रूपों को पुनर्जीवित करने का काम जारी रखना चाहिए ताकि हम अपने जीवन के गुणों को सम्पन्न बना सकें और विश्व के लोगों के साथ जीवन की अनंत ऊंचाई, मेलभाव और परम सुख की अपने देश की दृष्टि साझा कर सकें। उन्होंनपे कहा कि ‘गीत गोविन्दम् का व्यापक आकर्षण श्रीकृष्ण और राधा के प्रति उनके प्रेम से होता है। श्रीकृष्ण की गाथा भारतीय हृदय में अंकित है और इसका संकलन इतना संगीतमय और मधुर है कि संगीतकारों और नर्तकों द्वारा इसके विभिन्न रूप दिये गये है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि दर्शन, आध्यात्मिकता, कला और साहित्य समान जिज्ञासा के हिस्से है।