नई दिल्ली: राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के स्थापना दिवस पर व्याख्यान देते हुए, उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू नेकहा कि हमें जनजातियों को पिछड़ा मान लेने की भ्रांति को त्यागना होगा। जनजातीय समुदायों की जीवंत और समृद्ध परंपराएं हैं जिनका आदर करना होगा। उन्होंने कहा ऐसा करना न केवल सामाजिक नागरिक शिष्टाचार है बल्कि हमारा संवैधानिक संकल्प भी है। श्री नायडू ने कहा कि आज जब हम प्रकृति सम्मत स्थाई विकास के रास्ते खोज रहे हैं, ये समुदाय हमें पर्यावरण सम्मत विकास के कई गुर सिखा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि विश्व भर में हर जनजातीय समुदाय प्रकृति को उसके विभिन्न रूपों में पूजता है,पूजा पद्धतियां अलग होसकती है पर प्रकृति के प्रति उनकी आस्था एक है। विविधता में एकता का इस से बड़ा उदाहरण संभव नहीं।
श्री नायडू ने आगाह किया कि संरक्षण के नाम पर इन समुदायों को राष्ट्र के विकास की मूल धारा से अलग थलग नहींकिया जाना चाहिए। युवाओं की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को अभिव्यक्ति और अवसर मिलने चाहिए, तभी सबका साथसबका विकास का संवैधानिक संकल्प पूरा होगा। इस संदर्भ में उपराष्ट्रपति ने सरकार द्वारा चलाए गए जनधन, मुद्राजैसे वित्तीय समावेशन के कार्यक्रमों का ज़िक्र भी किया।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई को याद किया जिन्होंने जनजातियों को देश कीमूलधारा में शामिल करने हेतु, उनके मुद्दों को सुलझाने के लिए अलग जनजातीय कल्याण मंत्रालय की स्थापना की थीऔर एक पृथक राष्ट्र जनजातीय आयोग गठन किया था। उपराष्ट्रपति ने कहा कि अटल जी के विराट व्यक्तित्व मे शांतिऔर शक्ति का अद्भुत सुयोग था। वे देश मे संपर्क क्रांति के सूत्रधार भी थे और पोखरन के आपरेशन शक्ति के भी।
उपराष्ट्रपति से सुझाव दिया कि संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत आने वाले राज्यों के राज्यपालों कीरिपोर्टों को संसद के पटल पर रखा जाय और संसदीय समितियों द्वारा अध्ययन किया जाय।
The Union Minister for Tribal Affairs, Shri Jual Oram, the Chairperson, National Commission for Tribal Affairs, Dr. Nand Kumar Sai, the Vice Chairperson, National Commission for Tribal Affairs, Ms. Anusuiya Uikey, the Secretary, NCST, Shri A.K. Singh and other dignitaries were present on the occasion.
उपराष्ट्रपति के भाषण का पाठ निम्नलिखित है:
“राष्ट्रीय जनजातीय आयोग की स्थापना दिवस के अवसर पर अपने उद्बोधन का प्रारंभ श्रद्धेय अटल जी की पावन स्मृतिको प्रणाम करके करना चाहता हूं। एक वरिष्ठ अनुभवी राजनेता के रूप में अटल जी ने भारत की जनजातियों को राष्ट्र कीमूलधारा में लाने के लिए, उनसे जुड़े तमाम मुद्दों का समाधान करने के लिए नये जनजातीय कल्याण मंत्रालय का गठनकिया था। 2004 में उन्होंने पृथक राष्ट्रीय जनजातीय आयोग की स्थापना की। आज ये दोनों संस्थान देश के जनजातीयकल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
अटल जी साहित्य शिल्पी थे, वे राष्ट्र नेता थे। उनके चिंतन में विस्तार था, उदारता की गहराई थी जिसमें भारत की हज़ारोंवर्ष पुरानी सभ्यता, उसकी विविधतापूर्ण संस्कृति, उसकी अनगिनत भाषाओं के साहित्य को आत्मसात् कर लेने कीमहान क्षमता थी। इसी कारण उनके व्यक्तित्व में गंभीरता–व्यंग्य, सरलता और कठोर निर्णय लेने की क्षमता, जैसेविरोधाभासी गुणों का संगम भी सहज ही प्रतीत होता था। अटल जी भारत में संपर्क क्रांति के सूत्रधार भी थे और पोखरणमें आपरेशन शक्ति के भी। उनके विराट व्यक्तित्व में शांति और शक्ति दोनों का अद्भुत सुयोग था। मेरा सौभाग्य रहा किमुझे ऐसे राष्ट्रनेता के साथ कार्य करने का अवसर मिला।
भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है लेकिन एक युवा राष्ट्र है। शताब्दियों से भारतीय सभ्यता नयी सोच, नई अवधारणाओं और नए प्रभावों को अपनाने और आत्मसात् करके मजबूत हुई है।
फिर भी हमारी संस्कृति के मूलभूत सिद्धांत, इन भिन्न-भिन्न प्रभावों के बावजूद अक्षुण्ण रहे हैं। वसुधैव कुटुम्बकम यापूरा विश्व ही मेरा परिवार है- भारतीय संस्कृति की विशेषता का एक अद्वितीय उदाहरण है। अपनी विविधताओं केबावजूद स्वतंत्रता के बाद, हम भारत के लोगों ने प्रजातांत्रिक व्यवस्था के तहत, राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिकसमानता और एकता का आदर्श स्वीकार किया। यह इस बात को दर्शाता हे कि भारत सभी संस्कृतियों, धर्मों और जातियोंको साथ लेते हुए निरंतर समावेशी विकास एवं प्रगति के पथ पर बढ़ रहा है।
अंग्रेज शासक जनजाति या आदिम जाति जैसे शब्दों का प्रयोग, मुख्यधारा से अलग निर्वासित लोगों के समूह के लिएकरते थे। इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग भारत के प्राचीन समुदायों के प्रति अंग्रेजों के तिरस्कार को व्यक्त करता था।वहीभारतीय संविधान निर्माताओं ने राष्ट्रीय मूलधारा में उनके समावेश के प्रावधान किये।
संविधान सभा में जनजातीय समुदाय से 06 सदस्य थे। फिर भी वे अपने विचारों को सामने रखने में प्रतिभाशाली औरमुखर थे। 19 दिसम्बर, 1946 को बिहार से श्री जयपाल सिंह ने संविधान के Aims and Objectives Resolution पर अपनेविचार रखे, जो जनजातीय समाज की भावनाओं और अपेक्षाओं को व्यक्त करते है। उन्होंने जो कहा, उसे मैं यहां उद्धृतकरता हूं-
“महोदय, मेरे लिये जंगली होना गर्व की बात है, यह वही नाम है जिसके द्वारा हम देश के अपने हिस्से में जाने जाते हैं।”
इन समुदायों की लंबी लोकतांत्रिक जीवन शैली के बारे में उन्होंने कहा :-
“आप जनजातीय लोगों को लोकतंत्र नहीं सिखा सकते हैं, आपको तो उन लोगों से लोकतांत्रिक तौर तरीकों को सीखना है।वे धरती पर सबसे पुराने लोकतांत्रिक लोग हैं।”
उन्होंने नये भारत से अपेक्षा की कि:-
“अब हम एक नया अध्याय शुरू करने जा रहे हैं, स्वतंत्र भारत का एक नया अध्याय जहां अवसर की समानता होगी, जहांकिसी की भी उपेक्षा नहीं होगी। मेरे समाज में जाति पर कोई सवाल नहीं होगा। हम सब बराबर होंगे।”
यह विचारणीय है कि क्या हम श्री जयपाल सिंह जी की आशाओं पर खरे उतरे हैं।
तत्पश्चात् संविधान सभा ने दो उप समितियों का गठन किया जिसमें से एक असम के उत्तर पूर्व सीमांत के आदिवासीक्षेत्रों के लिये थी, जिसकी अध्यक्षता, श्री गोपीनाथ बारदोलोई ने की तथा दूसरी उप समिति असम के अलावा अन्यजनजातीय और आंशिक रूप से जनजातीय क्षेत्रों के लिये थी जिसकी अध्यक्षता श्री ए. वी. ठक्कर ने की। दोनों उपसमितियों ने संविधान सभा में एक संयुक्त रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट द्वारा भारत के संविधान में पांचवी और छठीअनुसूची के क्षेत्रों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया गया।
हमारे संवैधानिक प्रावधान के अनुसार, अनुसूचित क्षेत्रों वाले प्रत्येक राज्य के राज्यपाल, उस राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों केप्रशासन पर राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। राज्यपाल द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन का ब्यौरा दिया जाताहै। ये रिपोर्ट बहुत महत्वपूर्ण है। ये रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों के सभा पटल पर रखी जानी चाहिये। मैं सलाह दूंगा कि इनरिपोर्टों का संसदीय समिति द्वारा अध्ययन किया जाना चाहिए।
I would suggest that the Governor’s Reports on Scheduled areas must be laid on the table of the Parliament and the Parliamentary Committee must examine them, in depth.
पंद्रह वर्षों के कार्यकाल के दौरान राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने देश की अनुसूचित जनजातियों के हितों केरक्षोपायों के लिये काफी कार्य किया है। वंचित वर्गों के लिये यह आशा की किरण है लेकिन अभी बहुत कुछ किया जानाबाकी है।
हमें स्थानीय जनजातीय समुदायों के प्रति अपनी अवधारणा को बदलना होगा। ये जीवंत समाज है ये आकांक्षी समाज है।इसकी जीवित परंपराऐं हैं। जिनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।
पिछले सप्ताह मुझे प्रयाग कुंभ के अवसर पर किवा कुंभ में सम्मिलित होने का अवसर मिला। विश्व के लगभग 50 देशोंके जनजातीय समुदाय के नेताओं से पर्यावरण, प्रकृति सम्मत विकास पद्धति पर विमर्श करने का अवसर मिला। मुझेज्ञात हुआ कि किस प्रकार से विश्व भर के जनजातीय समुदाय, प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए तत्पर हैं। किसप्रकार हमारे प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर आधारित आर्थिक चिंतन के विकल्प के रूप में उनके पारंपरिक विकास कीपद्धति, उनकी पारंपरिक तकनीकें, प्रकृति सम्मत हैं।
यदि ध्यान से देखें तो प्रकृति और उसके रुपों के प्रति आदर का संस्कार हर स्थानीय समाज में पाया जाता है -पूजा पद्धतिभिन्न हो सकती है परंतु प्रकृति और पर्यावरण के प्रति आदर का भाव हर जनजातीय समुदाय में समान है। विभिन्नताओंमें एकता का इससे उत्कृष्ट उदाहरण नहीं मिलेगा।
आज जब हम पर्यावरण सम्मत विकास प्रणाली को खोज रहे हैं – अपने पर्यावरण के प्रदूषण से चिंतित हैं – जंगलों औरजल स्रोतों के नष्ट होने से चिंतित हैं, पर्यावरण-संरक्षण की जनजातीय तकनीकें, प्रकृति के प्रति उनके संस्कार, हमें बहुतकुछ सिखा सकते हैं।
As we look for the sustainable development strategies, we can learn from the environment friendly traditional lifestyles and techniques of these groups. We will have to give up this hubris that scheduled tribes are backward. We must honour and accept their traditions and lifestyles. It is not only essential social courtesy but also our constitutional obligation.
लेकिन, हमें यह घमंड छोड़ना होगा कि जनजातियां पिछड़ी ही होती हैं। जनजातियों की समृद्ध परंपरा है उसका आदरकरना होगा। ये न केवल सामाजिक नागरिक शिष्टाचार है बल्कि हमारा संवैधानिक संकल्प भी है। जैसा कि दीन दयालजी कहते थे हमने आर्थिक प्रगति के नाम पर सामाजिक और पर्यावरणीय विकृति को मोल ले लिया है। इससे छुटकाराहमारी समृद्ध जनजातीय परंपराऐं दिला सकती हैं। जब हम अपने शांति मंत्रों में, पृथ्वी, अंतरिक्ष, अग्नि, जल, औषधियोंऔर वनस्पति की शांति की कामना करते हैं तो हमे हमारे स्थानीय समुदायों की जीवन शैली से प्रेरणा लेनी चाहिए।
भारत तेज़ी से बदल रहा है। आज हम विश्व की सबसे तेज़ अर्थव्यवस्था हैं – विश्व बैंक, आई एम एफ जैसी अंतरराष्ट्रीयसंस्थाऐं भारत की प्रगति में विश्व की उन्नति देख रही हैं। “Reform, Perform, Transform” हमारा मंत्र हैं। “सबका साथसबका विकास” हमारी राष्ट्रीय नीति है।
ऐसे में देश की एक बड़ी जनजातीय जनसंख्या की आकांक्षाओं को कैसे नज़रंदाज किया जा सकता है? आज इन वर्गों केयुवा, नव कौशलों में प्रशिक्षण ले रहे हैं, इन वर्गों के युवाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण दे कर प्रशासन की मूल धारामें लाया जा रहा है। जनधन, मुद्रा, स्टैंड अप इंडिया, जैसी योजनाओं से इन युवाओं को अपने पारंपरिक व्यवसायों कोउद्यमों में परिवर्तित करने के अवसर दिये जा रहे हैं। सरकार ने हाल ही में कई वित्तीय समावेशन पहलों की शुरूआत कीहै। NCST को इन पहलों की समीक्षा करनी चाहिए ताकि अधिक से अधिक अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को देश कीवित्तीय समावेशन व्यवस्था के दायरे में लाने के लिए अपेक्षित उपायों पर सुझाव दे सके। यह जनजातियों को सशक्तबनाने की ओर योगदान होगा।
हमें यह संतुलन बनाना होगा कि जनजातियों को संरक्षण देने के नाम पर हम कहीं उन्हें विकास की मूलधारा से अलग हीन कर दें। उनकी नव आकांक्षाओं को संरक्षण के संकीर्ण दायरे में न बांध दे। आवश्यकता है कि वृहत्तर सामाजिक परिवेशइन युवाओं की आकांक्षाओं, संस्कारों, और संस्कृति को सहर्ष स्वीकार करें। इनकी परंपराओं और आकांक्षाओं को अपनीस्वस्पर्शी विकास नीति में स्थान दें तभी “सबका साथ सबका विकास” का संवैधानिक संकल्प पूरा होगा।
We have to strike a balance between protecting their cultural heritage and their urge and expectation for development. We cannot isolate them from national mainstream in the name of protection. The youth must get opportunity to voice and realize their aspirations and expectation. The Government has begun massive campaign for financial inclusion through Jandhan, MUDRA or Stand Up India. We need to make our development inclusive to realize the ideal of “Sabka Saath, Sabka Vikas”.
आपने इस महत्वपूर्ण विषय पर मुझे अपने विचार और अपेक्षाऐं साझा करने का अवसर दिया आपका आभारी हूं।धन्यवाद