उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) द्वारा प्रगतिशील भारत के 75 साल और इसके गौरवशाली इतिहास का उत्सव और सालगिरह’ आजादी का अमृत महोत्सव’ सोमवार से शुरू हो गया।
समारोह के पहले दिन, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने पीडीएस सुधारों में लंबे समय से अपने भागीदार रहे संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के साथ मिलकर ‘खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पीडीएस सुधारों में भारत की यात्रा’पर एक वेबिनार का आयोजन किया। इस वेबिनार में उच्च स्तरीय विशेषज्ञों ने भाग लिया और भारत में प्रौद्योगिकी आधारित पीडीएस सुधारों की यात्रा, कोविड-19 संकट के दौरान खाद्य-सुरक्षा सुनिश्चित करने में भारत के अनुभव, खाद्यान्न की बर्बादी और भंडारण के दौरान होने वाले नुकसान की समस्या से निपटने के लिए आपूर्ति श्रृंखला में सुधारोंतथा नवाचारों और संचालन अनुसंधान की भूमिका, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और टीपीडीएस के परिवर्तन में अन्य नई प्रौद्योगिकियों पर विचार-विमर्श किया।
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का एक लंबा इतिहास है, जिसे आज़ादी से पहले भारत में लागू किए गए ‘खाद्यान्न राशनिंग’ के रूप में देखा जा सकता है। यह वह अवधि है,जिसे आज भी भीषण अकाल और भूख की वजह से बड़े पैमाने पर होने वाली मौतों और मानव पीड़ा के लिए याद किया जाता है। स्वतंत्रता के बाद, भारत ने भीषण अकालों को सफलतापूर्वक इतिहास के पन्नों में धकेल दिया है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को केंद्र में रखते हुए खाद्य और कृषि से संबंधित अपनी विकास नीतियों के माध्यम से खाद्य असुरक्षा, कुपोषण और गरीबी की समस्या को दूर करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
डीओएफपीडी के संयुक्त सचिव एस. जगन्नाथन ने वेबिनार में ‘भारत में प्रौद्योगिकी आधारित पीडीएस सुधारों की यात्रा और इसके प्रभाव’ के बारे में बात करते हुए बताया कि 70 और 80 के दशक के अंत में ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण का विस्तार हुआ, जिसके बाद 1997 में लक्षित पीडीएस शुरू किया गया और ऐतिहासिक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) का कार्यान्वयन 2016 में पूरा हुआ।
उन्होंने कहा कि लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), 2013 के तहत पिछले 6-7 वर्ष के दौरान भारत सरकार द्वारा किए गए विभिन्न प्रौद्योगिकी आधारित सुधारों के कारण अत्यधिक पारदर्शी और मजबूत खाद्यान्न वितरण तंत्र के रूप में विकसित हुई है। देश के 34 राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों में ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ (ओएनओआरसी) योजना के लागू होने के साथ एनएफएसए लाभार्थियों, विशेष रूप से प्रवासी लाभार्थियों के लिए राशन की निर्बाध प्राप्ति (पोर्टेबिलिटी) में सुविधा बढ़ी है। टीपीडीएस के लचीलेपन और मजबूती को कोविड-19 संकट के दौरान अच्छी तरह से महसूस किया गया था जब गंभीर बाधाओं के बावजूद, वर्ष 2020 और 2021 में 80 करोड़ लाभार्थियों को 15 महीने के लिए 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के लगभग 600 एलएमटी अतिरिक्त खाद्यान्न आवंटित किए गए और देश इस कठिन समय के दौरान खाद्य सुरक्षा के जीते-जागते उदाहरण के रूप में सामने आया।
संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (यूएनडब्ल्यूएफपी), इंडिया के राष्ट्र निदेशक बिशो परजुली ने ‘कोविड-19 संकट के दौरान खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में भारत के अनुभव’ के बारे में बात की। उन्होंने न केवल स्वास्थ्य देखभाल के मामले में बल्कि पीडीएस में भी महामारी के प्रति भारत की प्रतिक्रिया की सराहना की।
उन्होंने कहा कि भारत ने हरित क्रांति के जरिए खाद्य उत्पादन और मध्याह्न भोजन, एकीकृत बाल विकास योजना और अन्य योजनाओं के माध्यम से भोजन तक पहुंच में सुधार करके खाद्य सुरक्षा में जबरदस्त प्रगति की है। श्री परजुली ने कहा कि यह देश दुनिया के लिए एक सबक है।
श्री परजुली ने कहा कि भारत की आजादी के 75 साल की यात्रा और खाद्य सुरक्षा की दिशा में इसकी प्रगति प्रेरणादायक है। देश ने इन तीनों मामलों- आत्म-निर्भरता हासिल करके खाद्य उत्पादन, कुपोषण को कम करना,लचीले और टिकाऊ आजीविका के लिए आशाजनक मॉडल शुरू करना और खाद्य सुरक्षा जाल के माध्यम से समावेशन में पिछले कुछ वर्षों में काफी प्रगति की है। कोविड-19 के दौरान भारत की त्वरित और व्यापक प्रतिक्रिया वैश्विक सबक देती है। उन्होंने कहा कि हमें हाशिए पर खड़े समूहों की अनदेखी और उनकी कमजोरी की समस्या को निपटाते हुए ‘समानता (इक्विटी), समावेशन और पहुंच’पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों के शारीरिक विकास में कमी, अनाज की बर्बादी, और एनीमिया तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को लेकर अभी भी चिंता है। उन्होंने कहा कि चावल का अनिवार्य भंडारण, वन नेशन वन राशन कार्ड, और पोषण प्लस जैसी प्रधानमंत्री द्वारा हाल की घोषणाओं से उम्मीद है कि पोषण संबंधी चिंताएं दूर होंगी।
एफसीआई के सीएमडी आतिश चंद्र ने खाद्य बर्बादी और भंडारण के दौरान होने वाले नुकसान को दूर करने के लिए आपूर्ति श्रृंखला में सुधारों और नवाचारों के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि भारतीय खाद्य निगम के पास लगभग 22,000 गोदाम हैं जबकि 12,000 अतिरिक्त गोदाम राज्यों के अधीन हैं।
आईआईटी दिल्ली में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के विभाग प्रमुख प्रो. एस.जी. देशमुख ने टीपीडीएस के बदलाव में संचालन अनुसंधान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अन्य नई तकनीकों की भूमिका के बारे में बात करते हुए कहा कि पीडीएस गरीबी उन्मूलन और भूख को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
हरित क्रांति, किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न की खरीद और बफर स्टॉक नीति आदि के नीतिगत पैकेज ने एक अकाल ग्रस्त कम खाद्यान्न वाले देश को खाद्यान्न से परिपूर्ण और शुद्ध खाद्यान्न निर्यात करने वाले देश में सफलतापूर्वक बदलना संभव बना दिया। इन नीतियों ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के माध्यम से भारत में 80 करोड़ से अधिक लोगों को कानूनी अधिकार के रूप में अत्यधिक सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्रदान करने वाले देश बनाया है।
इसके अलावा, प्रौद्योगिकी आधारित पीडीएस सुधारों ने मानवीय रूप से संचालित प्रणाली को एक अत्यधिक पारदर्शी स्वचालित प्रणाली में बदल दिया है, जो पूरे वर्ष सबसे कमजोर तबके के लाभार्थियों के लिए पर्याप्त खाद्यान्न की गरिमापूर्ण पहुंच को संभव बनाता है। भारत में खाद्य प्रणाली का लचीलापन और मजबूती वास्तव में कोविड-19 महामारी के संकट के दौरान दिखाई दे रही थी। आज कोविड-19 संकट के प्रति भारत की खाद्य सुरक्षा प्रतिक्रिया को इसकी अद्वितीय गति, पैमाने और पारदर्शिता के लिए एक जीता-जागता उदाहरण के रूप में विश्व स्तर पर देखा जा रहा है।
निरंतर सुधारों की जरूरत ने सरकार को कुपोषण को दूर करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से फोर्टिफाइड चावल की आपूर्ति और देश में किसी भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकान से प्रवासी लाभार्थियों को पीडीएस लाभ पाना सुनिश्चित करने के लिए पोर्टेबिलिटी सुविधा का कार्यान्वयन जैसी क्रांतिकारी नीतिगत पहलों को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है। समग्र नीति के माध्यम से कुपोषण और भोजन की बर्बादी/भंडारण के दौरान होने वाले नुकसान जैसी चुनौतियों का भी समाधान किया जा रहा है।