जो कार हम चलाते हैं, वह हमारे बारे में बहुत कुछ बताती है। नए युग के नागरिक जलवायु के प्रति बहुत जागरूक हैं। जब आप अपने वाहन को स्टार्ट करते हैं, तो क्या आप पृथ्वी को एक स्थायी हरित भविष्य की ओर ले जा रहे हैं और क्या साथी यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं? भूमंडल-ताप वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) के तेजी से बढ़ते स्तर ने हमें गंभीरता से सोचने पर मजबूर किया है। पूरी दुनिया व्यापक स्तर पर जलवायु संकट के कगार पर है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने कहा है, “मानव हस्तक्षेप से, जलवायु उस तेजी से गर्म हो रही है, जिसे कम से कम पिछले 2000 वर्षों के अभूतपूर्व कहा जा सकता है।” अभी जब मैं यह लिख रहा हूं, कैलिफोर्निया ऐतिहासिक सूखे की चपेट में है, जंगल की आग ने यूनान को तबाह कर दिया है और बाढ़ ने चीन और अपने देश में राजस्थान, यूपी, एमपी, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों को पानी से भर दिया है। वैश्विक समुदाय इस भयानक संकट को चिंतित होकर देख रहा है। भारत, अत्यंत उच्च जोखिम वाले देशों में एक है। भारत में दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 मौजूद हैं; देश में वाहन-प्रदूषण कुल कार्बन उत्सर्जन के लगभग 30 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है, जो भारत को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन-उत्सर्जक बना देता है। भारत में पुराने और अनुपयुक्त वाहन, वायु प्रदूषण की आपात स्थिति के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं, जिनमें उत्सर्जन-स्तर नए वाहनों की तुलना में लगभग 6-7 गुना अधिक होता है।
भारत में वित्त वर्ष 2020 में लगभग 2.1 करोड़ वाहनों की बिक्री हुई है और पिछले दो दशकों में ऑटोमोबाइल क्षेत्र की वृद्धि दर 9.4 प्रतिशत रही है। वर्त्तमान में, भारत में लगभग 33 करोड़ वाहन पंजीकृत हैं। इसलिए, यह अनिवार्य रूप से कहा जा सकता है कि 1950 के दशक में पंजीकृत वाहन अभी भी सड़क परिवहन प्राधिकरण में ‘पंजीकृत’ हो सकता है। कुल वाहनों की संख्या में दुपहिया वाहनों का सबसे बड़ा हिस्सा है, जो लगभग 75 प्रतिशत है, इसके बाद कार/जीप/टैक्सी का दूसरा सबसे बड़ा खंड लगभग 13 प्रतिशत है। वाहन स्क्रैप नीति, किसी भी वाहन का पंजीकरण रद्द करने के लिए अपनी तरह की पहली संस्थागत व्यवस्था है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के वाहन डेटाबेस के अनुसार, लगभग एक करोड़ से अधिक वाहन ऐसे हैं, जिनके पास वैध फिटनेस या पंजीकरण प्रमाण पत्र नहीं है। वाहन स्क्रैप नीति में “वाहनों की जीवन समाप्ति” के लिए एक तंत्र बनाने की परिकल्पना की गई है। ये ऐसे वाहन हैं, जो अब सड़कों पर चलने के लिए उपयुक्त नहीं हैं और इनमें प्रदूषण उत्सर्जन, ईंधन की निम्न दक्षता और यात्रियों के लिए सुरक्षा-जोखिम जैसे नकारात्मक पहलू हैं। ये ‘जीवन समाप्त’ वाले वाहन, स्क्रैप के लिए सबसे उपयुक्त हैं। इसके अलावा, अनुमान है कि लगभग 13-17 करोड़ वाहन अगले 10 वर्षों में अपने जीवन समाप्ति के स्तर पर पहुंच जाएंगे।
प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा है कि चक्रीय अर्थव्यवस्था हमारी धरती के पर्यावरण को हुए नुकसान को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होने जा रही है। केंद्र सरकार ने परिणाम पर आधारित एक चक्रीय अर्थव्यवस्था की अवधारणा को अपनाया है, ताकि संसाधन दक्षता को अधिकतम किया जा सके तथा शून्य अपशिष्ट एवं उत्पादन और खपत के स्थायी पैटर्न को बढ़ावा दिया जा सके। “वाहनों की जीवन समाप्ति” (ईएलवी) के स्क्रैप से न केवल लौह और अलौह धातुएं बल्कि प्लास्टिक, कांच, रबर, कपड़ा आदि अन्य सामग्री भी मिल सकतीं हैं, जिनका पुनर्चक्रण किया जा सकता है या जिनके खुरचन अथवा रद्दी को ऊर्जा-प्राप्ति के लिए ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। ईएलवी-पुनर्चक्रण, अक्षय संसाधनों के उपयोग के साथ-साथ अपशिष्ट की मात्रा को कम करने की दिशा में एक बदलाव लाएगा।
2008-09 में वैश्विक आर्थिक मंदी के दौरान, पुराने वाहनों के बदले नये वाहन खरीदने के लिए नकद प्रोत्साहन (कैश फॉर क्लंकर्स) और कार भत्ता छूट प्रणाली (सीएआरएस) अमेरिकी संघीय सरकार की इसी तरह की पहल थी। पुराने और ईंधन-अक्षम वाहन के मालिक को वित्तीय प्रोत्साहन दिए जाते हैं, ताकि वे अपने पुराने वाहन बेच सकें व नए और अधिक ईंधन कुशल विकल्पों को अपना सकें। यूरोपीय संघ हर साल लगभग 9 मिलियन टन ईएलवी उत्पन्न करता है। मुख्य रूप से ईएलवी के प्रबंधन-समाधान की जिम्मेदारी उन लोगों को दी जाती है, जो इसे उत्पन्न करते हैं। इसी तरह, जापान में ईएलवी के प्रबंधन-समाधान को एक बड़ी चुनौती के रूप में पहचान की गयी है, जहां सालाना लगभग 5 मिलियन वाहन ईएलवी वाहन की श्रेणी में आ जाते हैं। कई विकसित देशों ने भविष्य के ऑटोमोबाइल निर्माण में, एक संसाधन के रूप में ईएलवी के अधिकतम उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को अपनाया है। भारत सरकार की वाहन स्क्रैप नीति इन वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप है।
दिल्ली में मायापुरी, मुंबई में कुर्ला, चेन्नई में पुधुपेट्टई, कोलकाता में मल्लिक बाज़ार, विजयवाड़ा में जवाहर ऑटो नगर, गुंटूर में ऑटो नगर – भारत भर के शहरी क्षेत्रों में कबाड़ हो चुके वाहनों के विशाल इकोसिस्टम (व्हीकल स्क्रैपिंग इकोसिस्टम) के उदाहरण हैं। इस समय भारत में स्क्रैप वाहनों के लिए एक अनौपचारिक और असंगठित बाजार चल रहा है और इस असंगठित क्षेत्र की मूल्य श्रृंखला अत्यधिक बिखरी हुई, अत्यधिक श्रम साध्य और पर्यावरण प्रतिकूल है। इसके अलावा, चूंकि अनौपचारिक क्षेत्र बेकार हो चुके वाहनों को तोड़ने अथवा काटने के साथ ही उन्हें फिर से उपयोग में लाने (पुनर्चक्रित करने ) के लिए पुराने तरीकों का उपयोग करता है, इसलिए इस प्रक्रिया में उच्च शक्ति वाली इस्पात (स्टील) युक्त मिश्र धातुओं और अन्य मूल्यवान धातुओं के वास्तविक मूल्य और उनके फिर प्रयोग की क्षमता के बारे यह काम करने वालों को जानकारी ही नहीं होती हैI बेकार हो चुके इन वाहनों के पुनर्चक्रण के इस अनौपचारिक और असंगठित क्षेत्र में मुख्य रूप से व्यापारी, कबाड़ काटने वाले, कबाड़ विक्रेता (स्क्रैप डीलर) और पुनर्चक्रणकर्ता शामिल हैं। केंद्र सरकार की नई वाहन स्क्रैप नीति इस असंगठित बाजार को आमूलचूल बदल देगी और कई अनौपचारिक क्षेत्रों के श्रमिकों को औपचारिक क्षेत्र के दायरे में ले आएगी ।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा इन कबाड़खानों (स्क्रैपयार्ड) के मौजूदा क्रियाकलापों का मूल्यांकन और इनकी समझ हेतु किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया है कि इस क्षेत्र में वाहनों की देखरेख और मरम्मत की दुकानों का बोलबाला है। यहां वाहन मुख्य रूप से दलालों, पुरानी कारों की खरीद-बिक्री करने वालों (डीलरों), निजी बस/टैक्सी ऑपरेटर संघों या मैकेनिक की दुकानों से प्राप्त किए जाते हैंIयहां तक कि अक्सर चोरी किए गए वाहनों को भी यहां काटकर नष्ट कर दिया जाता है। दलाल आमतौर पर वाहनों को वित्त कंपनियों, बीमा कंपनियों और पुलिस विभागों द्वारा की गई नीलामी से प्राप्त करते हैं। वाहनों को खोलने के लिए काटना, एक विशुद्ध रूप से कारीगरों द्वारा की जाने वाली (मैनुअल) प्रक्रिया है, जिसमें लगभग 3-4 लोग काम करते हैं और जिसमें पुर्जों को खोलने के लिए किसी विशेष मशीनरी का उपयोग नहीं किया जाता है।
सरकार की वाहन स्क्रैप नीति ऐसे स्वचालित फिटनेस परीक्षण केंद्र स्थापित करने की दिशा में निवेश बढ़ाने की इच्छा रखती है जो वाहनों की ‘सड़क पर चलने की उपयुक्तता’ की जांच करने वाली अत्याधुनिक सुविधाएं होंगी। इन केन्द्रों को राज्य सरकारों, निजी क्षेत्र की फर्मों, वाहन (ऑटोमोबाइल) निर्माताओं और अन्य सम्बद्ध पक्षों द्वारा सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल पर स्थापित किया जाएगा। निस्संदेह, इससे रोजगार के बड़े अवसर पैदा होंगे। साथ ही, देश भर में कबाड़ निपटान केंद्र (स्क्रैपिंग सेंटर) स्थापित करने के लिए बड़े निवेश की भी आवश्यकता होगीI इससे भी मूल्य श्रृंखला में रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
वाहनों को अनुपयोगी घोषित करने (स्क्रैपेज) की नीति का उद्देश्य पुराने वाहनों के मालिकों (जो 15 वर्ष से अधिक पुराने हैं) को उनके वाहनों के पंजीकरणों को निर्बाध रूप से रद्द किए गए जाने के लिए प्रोत्साहित करना और उन्हें ऐसे केन्द्रों में उन अनुपयोगी वाहनों को जमा किए जाने का प्रमाण पत्र प्रदान करना है। इस प्रमाणपत्र का उपयोग नए वाहन खरीदने के लिए किया जा सकता है और ऐसे प्रमाणपत्र धारी ग्राहक को पंजीकरण शुल्क की पूरी छूट मिलेगी। इसके साथ ही सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने निजी वाहनों के लिए सड़क कर (रोड टैक्स) पर 25% तक और वाणिज्यिक (कमर्शियल) वाहनों के लिए 15% तक की छूट के लिए मसौदा अधिसूचना को जारी किया है।
सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (एसआईएएम -सियाम) जैसे उद्योग संगठन भी इस पहल का समर्थन करने के लिए आगे आए हैं। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने एसआईएएम को कबाड़ घोषित (स्क्रैप) वाहनों के स्थान पर नए वाहनों की खरीद पर 5% छूट के लिए एक परामर्श (एडवाइजरी) जारी किया है। नई नीति में 15 वर्ष से अधिक पुराने निजी वाहनों के लिए पुन: पंजीकरण शुल्क बढ़ाने के साथ-साथ 15 वर्ष से अधिक पुराने वाणिज्यिक वाहनों के लिए फिटनेस प्रमाणन शुल्क बढ़ाने का भी प्रावधान किया गया है। राज्यों को प्रदूषण फैलाने वाले पुराने वाहनों पर ‘हरित कर (ग्रीन टैक्स)’ लगाने की सलाह दी गई है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश ने इस दिशा में पहले ही कदम उठा लिए हैं I
इस नीति का उद्देश्य उपयोगकर्ता को आर्थिक लाभ पहुंचाना भी है। एक विश्लेषण के अनुसार निजी कार उपयोगकर्ताओं और ट्रक उपयोगकर्ताओं को अगले 5 वर्षों की अवधि में क्रमशः 8 लाख रूपये और 20 लाख रूपये तक का विशुद्ध आर्थिक लाभ मिलना निश्चित है। व्यापक आर्थिक स्तर पर, यह नीति नए वाहनों की मांग पैदा करने के मामले में बहुत सीमा तक बाजी पलटने वाली सिद्ध होगी। कोविड महामारी के बाद की स्थितियों में वाहनों (ऑटोमोबाइल) की बिक्री में 14% की गिरावट आई है। यह नीति पुराने वाहनों हटाने के माध्यम से विनिर्माण को बढ़ावा देगी और उपयोगकर्ताओं के लिए नए वाहनों (ऑटोमोबाइल) की मांग पैदा करेगी, जिससे आने वाले वर्षों में इस उद्योग के वार्षिक कारोबार में 30% की वृद्धि होगी।
अनुपोगी हो रहे पुराने वाहन को नए से बदलने की प्रक्रिया के माध्यम से ही हम भारतीय आवागमन में नए युग की शुरुआत कर सकते हैंI फिर एक ऐसा भविष्य होगा, जो जलवायु के प्रति जागरूक होने के साथ ही, सड़क पर पैदल चलने वालों और वाहन यात्रियों के अनुकूल होने के साथ-साथ तकनीकी रूप से भी सक्षम होगा। केंद्र सरकार की वाहन स्क्रैप नीति कहें या वाहनों का स्वैच्छिक आधुनिकीकरण कार्यक्रम, अब सीधी रेखा में चलने के स्थान पर चक्रीय अर्थव्यवस्था में परिवर्तित होने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होने जा रहा है। यह भारत के शहरों में वायु प्रदूषण के खतरों को कम से कम करने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा तथा वाहन क्षेत्र का आधुनिकीकरण करने के अलावा ईंधन की मांग को भी बढ़ाएगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह नीति वास्तव में भारतीय सड़कों को आने वाली कई पीढ़ियों के नागरिकों के लिए एक सुरक्षित स्थान बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगी।
(लेखक नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी आधिकारी हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)