शरद पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसे कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस बार शरद पूर्णिमा 13 अक्टूबर को है। यह पूर्णिमा अन्य पूर्णिमा की तुलना में काफी लोकप्रिय है। मान्यता है कि यही वो दिन है जब चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है।
दरअसल, हिन्दू धर्म में मनुष्य के एक-एक गुण को किसी न किसी कला से जोड़कर देखा जाता है। माना जाता है कि 16 कलाओं वाला पुरुष ही सर्वोत्तम पुरुष है। कहा जाता है कि श्री हरि विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने 16 कलाओं के साथ जन्म लिया था, जबकि भगवान राम के पास 12 कलाएं थीं। बहरहाल, शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा, माता लक्ष्मी और विष्णु जी की पूजा का विधान है। साथ ही शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर उसे आकाश के नीचे रखा जाता है।
फिर 12 बजे के बाद उसका प्रसाद गहण किया जाता है। मान्यता है कि इस खीर में अमृत होता है और यह कई रोगों को दूर करने की शक्ति रखती है। शरद पूर्णिमा के दिन ही वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है।
शरद पूर्णिमा की पूजा विधि
शरद पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें।
घर के मंदिर में घी का दीपक जलाएं।
इसके बाद ईष्ट देवता की पूजा करें।
फिर भगवान इंद्र और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
अब धूप-बत्ती से आरती उतारें।
संध्या के समय लक्ष्मी जी की पूजा करें और आरती उतारें।
अब चंद्रमा को अर्घ्य देकर प्रसाद चढ़ाएं और आारती करें।
अब उपवास खोल लें।
रात 12 बजे के बाद अपने परिजनों में खीर का प्रसाद बांटें।
शरद पूर्णिमा की पूजा विधि
घर के मंदिर में घी का दीपक जलाएं।
इसके बाद ईष्ट देवता की पूजा करें।
अब धूप-बत्ती से आरती उतारें।
अब उपवास खोल लें।