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वन विभाग के साथ ही वन्य जीवो से खेती को हो रहे नुकसान के सम्बंध में आयोजित बैठक में मुख्यमंत्री श्री रावत

उत्तराखंड

देहरादून: मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जंगली जानवरो के कारण खेती के नुकसान को रोकने के लिये तत्परता से कार्य करने के निर्देश दिये है। उन्होने चाल खाल विकसित करने के साथ ही बड़ी मात्रा में टेंचेज बनाकर वनो में पानी रोकने के प्रयासो में भी तेजी लाने को कहा।
बीजापुर अतिथि गृह में वन विभाग के साथ ही वन्य जीवो से खेती को हो रहे नुकसान के सम्बंध में आयोजित बैठक में मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि जंगली सूअरो व बन्दरो के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में लोग खेती से विमुख होने लगे है, जो चिन्ता का विषय है, उन्होने इस सम्बंध वाइल्ड लाईफ बोर्ड के सदस्यो के साथ भी विचार विमर्श करने को कहा। उन्होने डीएम को सूअरो को मारने के लाइसेंस देने के साथ ही पीएसी को भी इसके लाइसेंस जानी करने को कहा। इस सम्बंध में उन्होने अपर पुलिस महानिदेशक पीडी रतूड़ी से फोन पर वार्ता भी की इससे जहां जरूरत होगी पीएसी के माध्यम से भी सूअर मारने की कार्यवाही की जायेगी। इसके लिये एमुलेशन की व्यवस्था की जायेगी।
उन्होने कहा कि जंगली सूअरो व बन्दरो के कारण खेती को हो रहे नुकसान के कारण लोगो में नाराजगी भी है, इसके लिये अधिकारी अपनी जिम्मेदारी समझे तथा जनता को राहत पहुचाये। धनराशि की कमी इसमें आड़े नही आने दी जायेगी। जंगल के बाहर बन्दरो को पकडने तथा सूअरो को मारने मे कोई वैधानिक कठिनाई नही होनी चाहिए। पुलिस को इसके लिए अस्थायी लाइसेंस की व्यवस्था शीघ्र की जाय, उन्होने बन्दर बाड़ो की स्थापना तथा स्टरलाइजेशन के कार्यो में तेजी लाने को कहा इसके लिये केम्पा से लगभग 5 करोड़ की धनराशि उपलब्ध करायी जायेगी। उन्होने इस क्षेत्र में कार्य कर रही स्वंय सेवी संस्थाओ की भी सेवा लेने के निर्देश दिये है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने लेपर्ड पकडने के लिये भी हरिद्वार में एक नया बाड़ा तथा लेपर्ड सफारी बनाने के निर्देश दिये। उन्होने कहा कि लोगो को जंगलो से जोड़ने के लिये गांव वालो को इसमें सहयोगी की भूमिका में रखा जाना होगा।
उन्होने कहा कि वनो में नमी की कमी भी वनाग्नि का एक कारण है। इसके लिये वनो में बड़ी संख्या में टेंचेज तथा वाटर बाडी तैयार की जाय। यह कार्य अगले पन्द्रह दिनो में शुरू हो जाय ताकि वर्षा का पानी इन स्थलो पर रूक सके। इस कार्य को अभियान के रूप में संचालित किया जाय। वर्षा के जल संरक्षण पर ध्यान देने तथा वनो में बड़ी मात्रा में मेहल घिघारू के पेड़ो के साथ ही मडुआ, झंगोरा के बीज बनो में छिडके जाये ताकि जंगली जानवरो को खाने की तलाश में आबादी की ओर न आना पडे। इसके लिये भी धनराशि की व्यवस्था की जायेगी।

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