नई दिल्ली: शीला दीक्षित को 1998 में सोनिया गांधी ने दिल्ली कांग्रेस की कमान सौंपी थी तो यह वो दौर था जब दिल्ली पर बीजेपी की मजबूत पकड़ थी। मदनलाल खुराना, साहेब सिंह वर्मा, सुषमा स्वराज सरीखे नेता दिल्ली में बीजेपी को मजबूत जनाधार दे चुके थे। केंद्र में भी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। मगर, शीला ने “प्याज, टमाटर तेल खत्म, बीजेपी का खेल खत्म” जैसे नारों के साथ महंगाई को ऐसा मुद्दा बनाया कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी की कमर टूट गयी। कांग्रेस की पहली मुख्यमंत्री बन बैठीं शीला दीक्षित। उसके बाद उन्हें 5 साल की 3 पूर्णकालिक पारी लगातार खेली।
बतौर मुख्यमंत्री ये 15 साल शीला दीक्षित के ऐसे रहे जिसमें उन्होंने दिल्ली में फ्लाई ओवर का जाल बिछा दिया। उन जगहों पर मेट्रो पहुंचा दिए जहां रिक्शा से भी पहुंचना मुश्किल हुआ करता था। दिल्ली की प्रदूषित आबोहवा को उन्होंने
बदल डाला। कॉलोनियों को विनियमित करने, उसकी संरचना में सुधार समेत नागरिक सुविधाओं के मामले में भी दिल्ली को बदल डाला। कॉमनवेल्थ गेम्स हों या दूसरे आयोजन, दिल्ली का नाम दुनिया में इज्जत से लिया गया। शीला दीक्षित का नाम आते ही दिल्लीवासियों के मुंह से निकलने लगा- विकास। आज भी दिल्ली में शीला दीक्षित और विकास एक-दूसरे का पर्याय हैं।
आधुनिक दिल्ली की आर्किटेक्ट हैं शीला दीक्षित। ल्यूटन्स से बड़े आर्किटेक्ट। ल्यूटन्स ने तो दिल्ली का नक्शा बनाया। मगर, उस दिल्ली से कहीं बड़ी दिल्ली में प्रशासन, राजनीति, खेल और सबसे बढ़कर दिल्ली की आत्मा को प्रभावित करने का काम शीला दीक्षित ने कर दिखाया। यह दिल्ली ऐसी दिल्ली है जिसे शीला ने किसी न किसी रूप में दीक्षित किया। अगर देश की राजधानी को ‘दीक्षित दिल्ली’ कहा जाए, तो शीला दीक्षित को सही मायने में यह श्रद्धांजलि होगी।शीला दीक्षित ने पहली बार लोकसभा का चुनाव 1985 में लड़ा और कन्नौज से सांसद चुनी गयीं। राजीव गांधी ने उन्हें अपनी सरकार में संसदीय राज्य कार्यमंत्री बनाया। पारिवारिक नजदीकी की वजह से शीला का इंदिरा परिवार के घर आना-जाना था और इसी वजह से राजीव से करीबी भी थी। राजीव गांधी की शहादत के बाद सोनिया गांधी के करीब रहीं शीला। राजनीति में उनके आने के बाद सोनिया-शीला और करीब आए। इसी करीबी का परिणाम था कि उन्हें दिल्ली की सियासत की कमान दी गयी और जिसका उन्होंने सफलता पूर्वक निर्वहन किया।