लखनऊः उत्तर प्रदेश के जलशक्ति मंत्री डाॅ0 महेन्द्र सिंह ने फेजर कम्पोजिट (जर्मन तकनीकी) से चेकडैम निर्माण परियोजना को अत्यन्त उपयोगी बताते हुए लघु सिंचाई विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए कि उत्तर प्रदेश में इस तरह की कम से कम 5 से 7 परियोजनाएं बनाकर लागू किया जाय। उन्होंने कहा कि यह भी ध्यान में रखा जाय कि पूरे भारत में किन-किन तकनीकों को प्रयोग करके चेकडैमों का निर्माण किया जा रहा है, उसका विस्तार से अध्ययन कराया जाय।
डाॅ0 महेन्द्र सिंह आज विधान भवन स्थित अपने कार्यालय कक्ष में चेकडैमों के निर्माण के लिए फेजर चेकडैम परियोजना का प्रस्तुतिकरण देख रहे थे। उन्होंने कहा कि इस नवीन तकनीकी से निर्मित होने वाले रबड़ चेकडैम का गहराई से अध्ययन कर दो महीने के अन्दर रिपोर्ट पेश की जाय।
जलशक्ति मंत्री ने यह भी कहा कि चेकडैमों की सिल्ट सफाई हेतु मनरेगा/ ग्राम पंचायत तथा स्वयंसेवी संस्थाओं का सहयोग लेकर तेजी से कार्य कराया जाय। उन्होंने कहा कि इस नई तकनीकी से किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी की सुविधा उपलब्ध होगी, इसके साथ ही भूगर्भ जल पर निर्भरता लगभग समाप्त हो जायेगी।
प्रस्तुतिकरण में मौजूद प्रमुख सचिव नमामि गंगे तथा ग्रामीण जलापूर्ति श्री अनुराग श्रीवास्तव ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि परियोजना के तकनीकी अध्ययन के लिए 3 अधिशासी अभियन्ता स्तर के अधिकारियों की कमेटी बनाकर 15 दिन में रिपोर्ट प्रस्तुत की जाय। इसके अलावा चेकडैम में सिल्ट की मात्रा व प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के मुताबिक परियोजना का निर्माण तथा भण्डारण हेतु अत्यधिक पानी आने व पानी के निकास व अन्य तकनीकी बिन्दुओं का विस्तृत परीक्षण किया जाना जरूरी है।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में संचालित हो रही योजना में परिवर्तन समय के हिसाब से सही है। फेजर कम्पोजिट गेट के निर्माता कम्पनी के सम्बन्ध में विस्तार से जानकारी प्राप्त कर ली जाय ताकि एक ही कम्पनी/फर्म पर निर्भरता न रहे।
प्रस्तुतिकरण बैठक में बताया गया कि फेजर कम्पोजिट चेकडैम परियोजना के अध्ययन के लिए लघु सिंचाई विभाग द्वारा अधीक्षण अभियन्ता लघु सिंचाई मुख्यालय श्री आलोक कुमार सिन्हा तथा श्री डी0पी0 वर्मा, अधिशासी अभियन्ता लघु सिंचाई खण्ड इटावा द्वारा अध्ययन किया गया था।
अध्ययन रिपोर्ट में पाया गया कि मौजूदा समय में संचालित योजना तथा नवीन परियोजना के बारे में बताया गया कि नदियों/नालों पर चेकडैम के स्थान पर फेजर कम्पोजिट जर्मन तकनीकी ज्यादा उपयोगी है। इस तकनीकी के द्वारा चेकडैम निर्माण से पूरे साल पानी उपलब्ध रहेगा तथा सिंचाई के लिए जैकवेल द्वारा भूमिगत पाइप लाइन डालकर दोनों किनारों पर लगभग 1 किमी0 तक के किसानों को लाभान्वित किया जा सकता है।
ज्यादा पानी की उपलब्धता से भूगर्भ जल तेजी से रिचार्ज होगा, जिससे भूजल स्तर में आशातीत बढ़ोत्तरी होगी। इस परियोजना में जिन गेटों का प्रयोग किया जायेगा, उसकी आयु लगभग 30 वर्ष होगी। फाइबर के बने होने के कारण इसकी दोबारा बिक्री नहीं हो सकेगी। नदियों में जलस्तर को जरूरत के मुताबिक कम-ज्यादा किया जा सकेगा।
माॅडल परियोजना के रूप में जनपद औरैया के ग्राम फतेहपुर रामू, विकास खण्ड भाग्यनगर में एक पायलेट प्रोजेक्ट लगभग 209 लाख रूपये की प्रस्तावित की गई है। इससे किसानों को आवागमन में सुविधा होगी। इसके अलावा 3 मीटर मी ऊंचाई तक अपस्ट्रीम में 09 किमी0 तक पानी भरा रहेगा।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश के गिरते भूजल स्तर को सुरक्षित रखने के लिए एवं सतही जल उपलब्ध कराने हेतु चेकडैम का निर्माण लघु सिंचाई विभाग द्वारा विगत 40 वर्षों से किया जा रहा है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में इसका अत्यधिक निर्माण किया गया है। राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर डिजाइन आदि में बदलाव किये जाते रहे हैं। नवीन पद्धति फेजर चेकडैम निर्माण के लिए 06 फरवरी, 2020 से 08 फरवरी, 2020 तक कर्नाटक में अपनाई गई इस तकनीकी का परीक्षण अधिकारियों द्वारा किया गया।
इस अवसर पर प्रमुख सचिव नमामि गंगे एवं जलापूर्ति श्री अनुराग श्रीवास्तव के अलावा विशेष सचिव एवं मुख्य अभियन्ता लघु सिंचाई श्री जुहैर बिन सगीर, अधीक्षण अभियन्ता श्री सत्य प्रकाश व डाॅ0 अम्बरीश कुमार सिंह सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे।