नई दिल्ली: भारत-ऑस्ट्रेलियाई सहयोग को मजबूत बनाने और दोनों देशों में थ्री डी प्रिंटिंग उद्योग के विकास के लिए आंध्र प्रदेश मेडिकल टेकजोन (एएमटीजेड) द्वारा हाल ही में विशाखापत्तनम में अपने परिसर में कलाम कन्वेंशन सेंटर में जैव अंगों की थ्री डी प्रिंटिंग पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में चिकित्सा के सभी क्षेत्रों में प्रयोग में आने वाली तथा नैदानिक और चिकित्सीय उपायों के लिए नए अवसर प्रदान करने वाली एक नवीन तकनीक के रूप में थ्री डी प्रिंटिंग में मौजूद संभावनाओं की खोज की गई। डायग्नोस्टिक विज़ुअलाइज़ेशन से लेकर सर्जिकल प्लानिंग तक थ्री डी प्रिंटिंग रोगी-विशिष्ट मॉडल रोगियों और चिकित्सकों के लिए एक अतिरिक्त लाभ वाली है।
प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ.जितेन्द्र कुमार शर्मा ने प्रतिनिधियों को एएमटीजेड में थ्री डी प्रिंटिंग सुविधा का अनुभव करने के लिए आमंत्रित किया, जो कि विभिन्न सामग्रियों और विविध अनुप्रयोगों के साथ दुनिया में थ्री डी प्रिंटिंग सुविधाओं के बड़े केन्द्रों में से एक है। उन्होंने थ्री डी बायोप्रिंटिंग द्वारा कम से कम 10 अंगों को विकसित करने की एक नई पहल – बायो हार्मोनाइज्ड एड्स फॉर रिहैबिलिटेशन एंड ट्रीटमेंट (भारत ) के बारे में भी बताया। उन्होंने इस परियोजना में अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय सहयोग का आह्वान किया जिससे लाखों लोगों को लाभ होगा।
ऊर्जा और स्वास्थ्य में उपयोग के लिए नई सामग्रियों की डिजाइन और खोज में शामिल ट्रांसलेशनल रिसर्च इनिशिएटिव फॉर सेल्यूलर इंजीनियरिंग एंड प्रिंटिंग (टीआरआईसीईपी) के निदेशक डॉ. गॉर्डन वालेस, ने कार्यशाला में धातु थ्री डी प्रिंटिंग पर विस्तार से जानकारी दी जो कि थ्री डी बायो-प्रिंटेड उत्पादों के लिए सही सामग्री के चयन, फार्मूला तय करने, प्रोटोटाइप का विकास और उनके व्यवसायिकरण के बारे में काफी महत्व रखता है।
सिडनी में एक ओटोलॉजिस्ट और कोक्लियर इंप्लांट तथा स्किल बेस सर्जन के रूप में काम करने वाली और आरएसीएस एनएसडब्ल्यू स्टेट कमेटी की उपाध्यक्ष डॉ. पायल मुखर्जी ने कृत्रिम जैव अंगों पर केवल अनुसंधान ही नहीं बल्कि बड़े जानवरों पर इनके नैदानिक परीक्षण की सुविधाआएं उपलब्ध कराए जाने पर भी जोर दिया। उन्होंने थ्री डी प्रिंटेड जैव अंगों के उपयोग में कॉस्मेटिक सर्जनों के सहयोग और भूमिका की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला।
मद्रास ईएनटी रिसर्च फाउंडेशन (एमईआरएफ), चेन्नई के सलाहकार ईएनटी सर्जन डॉ. रघुनंदन ने थ्री डी प्रिंटेड जैव अंगों से जुड़ी शल्य चिकित्सा के लिए सरकारी मदद पर जोर देते हुए कहा कि ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि थ्री डी प्रिंटेड जैव अंग कई बार महंगे हो सकते हैं।
टीआरआईसीईपी के सहायक निदेशक डॉ. संजय गंभीर (बायो-इंक और बायो मटीरियल्स), स्टार्ट-अप नेक्स्ट बिग इनोवेशन लैब्स के संस्थापक आलोक मेडिकपुरा अनिल और थिंक थ्री डी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राजशेखर उप्पतुरी भी इस कार्यशाला में शामिल हुए।