लखनऊ: उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की सचिव सुश्री वी. हेकाली झिमोमी ने आज कहा कि सरकार के निरन्तर प्रयासों और जागरूकता अभियानों के उपरान्त भी 75 प्रतिशत नवजातों को माताओं का दूध प्राप्त नहीं हो रहा है। इसके लिए बड़े स्तर पर जागरूकता फैलाने तथा परिवारों तक इसकी जानकारी पहुंचाने की आवश्यता है। उन्होने यूनीसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि उत्तर प्रदेश में औसतन 25 प्रतिशत बच्चे ही जन्म के एक घंटे के अन्दर माँ का स्तनपान कर पा रहे हैं, जो कि एक चिंताजनक विषय है, जब कि शत प्रतिशत नवजात शिशुओं को एक घंटे के भीतर स्तनपान करना चाहिये, माँ के प्रथम दूध में मौजूद पोषक तत्व और एंटीबॉडी बच्चे को दीर्घजीवी और निरोग बनाने में यह “प्रथम टीके” की तरह कार्य करते हैं। जन्म के प्रथम घंटे में स्तनपान से वंचित बच्चों में बीमारी की संभावना अधिक होती है और उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है।
सुश्री वी. हेकाली झिमोमी आज ‘‘विश्व स्तनपान दिवस’’ की पूर्वसंध्या पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तर प्रदेश मुख्यालय के राज्य कार्यक्रम प्रबन्धन इकाई सभागार में एक प्रेस कांफ्रेंस को सम्बोधित कर रही थी। विश्व स्तनपान सप्ताह की पूर्व संध्या पर मीडिया से बात करते हुए, उत्तर प्रदेश सरकार की सचिव, ने कहा, “मां को जन्म के बाद उन महत्वपूर्ण मिनटों में स्तनपान कराने के लिए चिकित्सा ईकाई कर्मियों और परिवारीजनों से पर्याप्त समर्थन की आवश्यकता है। प्रसव के उपरान्त देखभाल की गुणवत्ता में सुधार हेतु राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के सहयोग से समुदाय और स्वास्थ्य इकाई दोनों स्तर पर स्तनपान कराने के प्रचार हेतु सतत् प्रयास किये जा रहे हैंै। राज्य चिकित्सा महाविद्यालयों के साथ साझेदारी में स्वास्थ्य इकाई स्तर पर प्रत्येक नवजात को स्तनपान कराने के लिए एक राज्यव्यापी प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। राज्य में ससमय स्तनपान कराने की शुरुआत की दर- बुंदेलखंड के तीन जिलों – महोबा (42.1ः), बांदा (41ः) और ललितपुर (40ः) में अन्य जिलों की तुलना से बेहतर है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) के आंकड़ों के अनुसार (वर्ष 2015-16) जिला गोंडा (13.3ः), मेरठ (14.3ः), बिजनौर (14.7ः), हाथरस (15.3ः), शाहजहांपुर (15.8ः) सबसे कम है।
महाप्रबंधक बाल स्वास्थ्य राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन उत्तर प्रदेश डा अनिल कुमार वर्मा ने बताया कि एन.एच.एम. उत्तर प्रदेश में स्तनपान व शिशु आहार के प्रचार के लिए ष्ड।।ष् (मदर्स एब्सल्यूट अफेक्शन) के नाम से एक कार्यक्रम को कार्यान्वित कर रहा है ताकि स्तनपान को स्वास्थ्य इकाई और समुदाय दोनों स्तर पर जन्म के छः माह तक स्तनपान तथा छः माह पश्चात पूरक आहार के प्रति प्राथमिक व्यवहार को बढ़ाया जा सके। राज्य ने सभी 75 जिलों में प्रशिक्षकों का एक पूल बनाया है और प्रशिक्षण कार्यक्रम स्केलिंग धीरे-धीरे प्रगति पर है। उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 76 देशों के आंकड़ों का विश्लेषण किया जिसमें कई परिवारिक कारण और परम्परायें सामर्ने आइं जिनके कारण शिशुओं को स्तनपान में विलम्ब होता है, जिसमें नवजात शिशुओं के भोजन या पेय को तैयार करना, आम प्रथाओं, जैसे कोलोस्ट्रम को छोड़ना, नवजात शिशु को शहद चटाना, चीनी पानी का घोल देना, उसके साथ नवजात शिशु के माँ से पहले महत्वपूर्ण संपर्क में देरी शामिल है। उन्होंने कहा कि कई मामलों में, जन्म के तुरंत बाद बच्चों को उनकी मां से अलग किया जाता है और स्वास्थ्य कर्मियों से मार्गदर्शन सीमित होता है। माताओं और नवजात बच्चों को प्रदान की जाने वाली देखभाल की गुणवत्ता में अंतरः वर्ष 2005 और 2017 के बीच 58 देशों में, स्वास्थ्य संस्थानों में प्रसव 18 प्रतिशत अंक बढ़ गया, जबकि शुरुआती दीक्षा दर 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए डा. नीना गुप्ता, महानिदेशक, परिवार कल्याण, उत्तर प्रदेश ने बताया कि वर्ष 2005 से वर्ष 2017 के बीच 58 देशों में माताओं व नवजात शिशुओ के स्वास्थ्य की स्थिति में कुछ परिवर्तन आयें हैं जिनमें संस्थागत प्रसव में 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई हैं वहीं एक घंटे के भीतर नवजात शिशु को स्तनपान कराने में 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। एक शोध के अनुसार यह सामने आया है कि जिन शिशुओ ने जन्म के दो से 23 घंटे के भीतर स्तनपान किया उनकी मृत्यु की संभावनायें उन शिशुओं से 33 प्रतिशत अधिक होती है जो जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कर पाते हैं।