लखनऊ: महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा प्रो0 डाॅक्टर वी0एन0 त्रिपाठी के अनुसार प्रायः शरीर में किसी तरह तकलीफ होने पर इसकी जांच हेतु डाॅक्टर एक्स-रे और सीटी स्कैन कराने की सलाह देते हैं, लेकिन बच्चों के लिए इस तरह की जांच भविष्य में खुद बीमारी की वजह बन सकती है, क्योंकि इन जांचों के रेडियेसन से नुकसान पहुँचता है। खासकर बच्चों में जिनकी हड्डियाँ और कोशिकाएं कोमल होती हैं।
उन्होंने कहा कि बच्चों पर इन जांच का असर ज्यादा पड़ता है। जितना छोटा बच्चा हो उसके लिए रेडियोएक्टिव की मात्रा उतनी कम होनी चाहिए पर प्रायः टेक्निशियन ऐसा नहीं करते हैं। वह एक ही रेट पर ज्यादातर सभी का एक्स-रे और सीटी स्कैन कर देते हैं। ऐसे में बच्चा जरूरत से ज्यादा मात्रा में रेडियोएक्टिव किरणों के सम्पर्क में आ सकता है।
अल्ट्रासाउंड ज्यादा सेफ है क्योंकि इसमें ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल से अंदुरूनी अंगों के चित्र (इमेज) बनते हैं। जबकि एक्स-रे और सीटी स्कैन में रेडियोएक्टिव किरणों से अंदुरूनी अंगों की तस्वीर बनती है। इसको ध्यान में रखते हुए कई अंगों की जांच के लिए अब अल्ट्रासाउंड का सुझाव दिया जाता है। कुछ वर्षो पूर्व तक फेफड़े की जांच हेतु अल्ट्रासाउंड अच्छा नहीं माना जाता था। मरीजों का एक्स-रे कराया जाता था। लेकिन अब इसके स्थान पर अल्ट्रासाउंड जांच करायी जाती है। रेडियोएक्टिव किरणें जब भी हमारे शरीर की कोशिकाओं के सम्पर्क में आती हैं तो इसमें कई तरह के बदलाव आते हैं। रेडियोएक्टिव किरणों के ज्यादा सम्पर्क से त्वचा और खून के कैंसर की सम्भावना का खतरा बढ़ता है। बच्चों में कई जांच ऐसी होती हैं जिसमें एक्स-रे और सीटी स्कैन की जगह अल्ट्रासाउंड से जांच की जा सकती है। अतः चिकित्सक से परामर्श के अनुसार शरीर के अंदुरूनी अंगो की जांच के लिए एक्स-रे व सीटी स्कैन की जगह अल्ट्रसाउंड की जांच को प्राथमिकता दें।