देहरादून: उत्तराखण्ड के राज्यपाल डाॅ0 कृष्ण कांत पाल ने कहा कि युवा देश का भविष्य हैं और देश के विकास के लिए काफी हद तक उनकी जिम्मेदारी है। युवा ऊर्जा को सही दिशा में ले जाने की जरूरत है, यदि युवाओं में दृढ़ इच्छाशक्ति और आन्तरिक शक्ति हो तो वे चमत्कार उत्पन्न कर सकते हैं।
राज्यपाल आज देहरादून स्थित रामकृष्ण मिशन आश्रम में स्वामी विवेकानंद जी की 154वीं जयंती के अवसर पर आयोजित ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, हमारा लक्ष्य ऐसे जिम्मेदार व ईमानदार व्यक्तित्व का निर्माण होना चाहिए जो समृद्ध अतीत की बुनियाद पर भविष्य के लिए सार्थक दृष्टिकोण को विकसित कर सकें।
उन्होंने समारोह में शामिल होने पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि स्वामी जी की जयन्ती को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि देश के युवाओं में स्वामी जी की पहचान श्रेष्ठ प्रतीक व प्रेरणा सूत्र के रूप में बनी है।
राज्यपाल ने कहा कि 154वर्ष पूर्व जन्में भारत के महान सपूतों में एक स्वामी विवेकानंद को सार्वभौमिक रूप से महापुरूष का सम्मान मिला। स्वामी जी पूरब व पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति के बीच ऐसे आध्यात्मिक सेतु के शिल्पी थे जो वेदान्त के सिद्धान्त पर टिका था। स्वामी जी कहा करते थे कि युवाओं के भीतर दृढ़ इच्छाशक्ति, आन्तरिक शुचिता का आत्मबल तथा साहस होना चाहिए जिसके बल पर वे चुनौतियों का सामना कर हर समस्या का समाधान खोज सकें। वे प्रायः कहते थे कि सोच हमेशा ऊँची व श्रेष्ठ के लिए होनी चाहिए तभी सर्वोच्च हासिल हो सकता है।
राज्यपाल ने प्राथमिक शिक्षा के संदर्भ में स्वामी जी के विचारों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे शिक्षा कोे समाज के पुनर्निर्माण का साधन मानते थे। उनके अनुसार जो शिक्षा जनसामान्य के जीवन संघर्ष को कम करने में मददगार न हो सके, जिस शिक्षा से चरित्र निर्माण या परोपकार की भावना उत्पन्न न हो वह शिक्षा निरर्थक है।
राज्यपाल ने कहा, स्वामी विवेकानंद और श्री अरविंदो 19वीं सदी के उत्तरोत्तर तथा 20वीं सदी के प्रारम्भ के दो ऐसे पुरोधा थे जिनका भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण में सर्वाधिक योगदान है।
उन्होंने बताया कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी आत्मकथा ‘एक भारतीय तीर्थ यात्री’, में स्वामी जी के विचारों से प्रभावित होकर लिखा था कि व्यापक भारत भ्रमण के दौरान स्वामी जी ने लोंगो में आत्मविश्वास की लहर उत्पन्न की। उन्होंने अपने सार्वजनिक भाषणों और लेखनी के माध्यम से अस्पृश्यता और छुआ-छूत जैसी सामाजिक बुराइयों की दृढ़ता से निन्दा की। बाद में इन बुराइयों के उन्मूलन के लिए महात्मा गाँधी ने अथक प्रयास किये।
राज्यपाल ने, 2010 में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा भारत यात्रा के दौरान स्वामी जी के विषय में व्यक्त किये गये विचारों का उल्लेख करते हुए बताया कि ओबामा ने उन्हें उच्च कोटि के विचारक की संज्ञा दी और शिकागो में हुए ‘विश्व धर्म संसद‘ में स्वामी जी के प्रभावी व्याख्यान को अमेरिका में नैतिक कल्पना के विस्तार में योगदान के रूप में स्वीकारा। ओबामा ने यह भी स्वीकारा कि शिकागो में स्वामी जी के व्याख्यान से पूर्व सामान्य अमेरिकी नागरिकों को भारतीय दर्शन, आध्यात्मिक ज्ञान एवं समृद्ध संस्कृति के विषय में इतनी विस्तृत जानकारी नहीं थी।
राज्यपाल ने कहा कि स्वामी जी का जीवन दर्शन एवं प्रभावी कृत्य युवाओं के लिए निश्चित ही प्रेरणा व आदर्श हो सकते हैं। विश्व के युवा नागरिकों के रूप में युवाओं में ऊँचाइयों तक पहुँचने की श्रेष्ठ रचनात्मक ऊर्जा एवं क्षमता विद्यमान है। आज के समय में मौजूद विभिन्न प्रकार की चुनौतियांे का सामना करने के लिए युवाओं को सकारात्मक बदलाव की शक्ति बनकर आगे आना होगा।
इसी क्रम में राज्यपाल ने विवेकानंद जी के शब्दों में युवाओं का आह्वाहन करते हुए कहा कि निर्भीक और दृढ़ता से अपने कंधों पर सारी जिम्मेदारियाँ लो और समझो कि आप स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।