राहुल गांधी एक नाम जिसका 2017 शुरु होने से पहले लोग मज़ाक ही उड़ाया करते थे। कोई सी भी बात राहुल गांधी कहते थे, तो लोग उसमें से खामी निकालकर मज़ाक उड़ा दिया करते थे। पप्पू नाम से बुलाया जाता था। कभी अचानक से ग़ायब हो जाते थे तो कभी विदेशों में पाए जाते थे। कहा जाता था कि वे हार से बचते हैं। कमज़ोर नेता हैं। इन सब बातों को ले कर कांग्रेस में टूट पड़ने लगी थी। अगर पार्टी का सबसे बड़ा नेता ही कमज़ोर हो तो पार्टी में दरार आना स्वभाविक है। यही हुआ भी। कांग्रेस लगातार चुनाव हारती गई और साथ में मनोबल भी।
लेकिन इस साल के गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावों से पहले राहुल में एक परिवर्तन देखने को मिला। राहुल अमेरिका गए थे। एक अमेरीकी न्यूज़ चैनल से बात करते हुए राहुल ने केंद्र सरकार की धज्जियां उड़ा दीं। एक के बाद एक हमले किए। एक बात गौर करने लायक थी।
राहुल ने मुद्दों की बात की। उनके इस इंटरवयू में कहीं कोई ग़लती नही दिखी। लोगों से सराहना भी मिली। इसके बाद राहुल भारत आए।
यहाँ पर उनका इंतज़ार कर रहा था गुजरात चुनाव।
जो बदलाव अमेरिका में देखा गया, राहुल ने यहाँ भी जारी रखा। एक के बाद एक हमले करते देखे गए राहुल केंद्र सरकार पर। सबसे पहले उन्होंने नोटबंदी की आलोचना की और उसके बाद जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स बता दिया।
गुजरात में व्यापारियों के बीच जीएसटी को ले कर राहुल भुनाना चाहते थे, जिसमें वो कामयाब भी होते दिखे। यह नही, रणनीति के मामले में भी वो भाजपा को पछाड़ते हुए दिखे। गुजरात के तीन उभरते हुए नेता जिग्नेश मेहवाणी, अल्पेश ठाकोर और हार्दिक पटेल ने कांग्रेस को समर्थन दे दिया। अब राहुल ज़्यादा दमदार दिखने लगे।
चुनावी भाषणों में लोग उन्हें सुनने को आने लगे। लेकिन चुनाव परिणामों में कांग्रेस को हिमाचल और गुजरात दोनों में हार का सामना करना पड़ा। पर ये हार, हार के जैसी नही थी। भाजपा के गढ़ गुजरात में कांग्रेस ने भाजपा को 99 पर ही समेट दिया।
इसमें राहुल गांधी का असर साफ देखा गया। इसी बीच 16 दिसम्बर को राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए। जैसा की पहले देखा जाता था कि हार के बाद अकसर राहुल दिखना बंद कर देते थे, ऐसा इस बार नही हुआ। राहुल हार के बाद भी हिमाचल और गुजरात गए, कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ मिटिंग कर के हार की समीक्षा भी की।
अगला साल बहुत महत्वपूर्ण है..
चुनावों के नज़र से 2018 बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
इन चुनावों का असर सीधे 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर पड़ेगा। अगले साल मार्च-अप्रैल में उत्तर-पूर्वी राज्यों मेघालय, त्रिपुरा, नागालैंड, मिज़ोरम के साथ साथ कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इसके बाद सितंबर-अक्तूबर के महीने में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने हैं। इन सारे चुनावों में कांग्रेस को या तो सत्ता बचानी है या फिर सत्ता में वापस आना है।
देखने वाली बात ये होगी कि जिस तरह से राहुल गांधी ने गुजरात में भाजपा पर दबाव बनाया उसी तरह से राहुल पूर्व से ले कर दक्षिण और मध्य तक भाजपा पर कैसे दबाव बनाते हैं। भाजपा के पास चुनावी प्रचार के लिए कई धुँआधार नेता हैं, जबकि कांग्रेस के पास बस राहुल गांधी हैं फिलहाल। इस वजह से राहुल गांधी पर ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। राहुल के पैंतरे कामयाब हो तो रहे हैं लेकिन सवाल ये है कि क्या वो इसे जारी रख सकेंगे।
वैसे जानकारों के बीच चर्चा है कि भाजपा क्यों ना अब भी जनता के सामने राहुल का मज़ाक उड़ा रही हो पर अंदर ही अंदर उन्हें ले कर काफी सोच विचार कर रही है।
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