नई दिल्ली: सरकार की ओर से एक और बुरी खबर आने वाली है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली लागू होने के बाद आपको नेशनल हाईवे पर टोल टैक्स और ट्रेन का किराया ज्यादा चुकाना पड़ सकता है। इसकी वजह है जीएसटी लागू होने के बाद राजमार्ग व रेलवे की परियोजनाओं पर लागत में पांच से 10 फीसदी का इजाफा हो गया है।
इस बढ़ोतरी से सिर्फ सरकारी क्षेत्र ही प्रभावित हुए हैं क्योंकि निजी क्षेत्र के इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपरों को इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का लाभ मिल जाता है, इसलिए उन पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ रहा है लेकिन सरकारी उपक्रमों पर इसका ज्यादा घनत्व बढ़ रहा है।
केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय में वित्तीय मामलों को देखने वाले अधिकारी ने जीएसटी के बाद परियोजना लागत से संबंधित सवाल पर कहा कि अब मंत्रालय की परियोजना लागत करीब दस फीसदी बढ़ गई है। इस बढी लागत को कंपनसेट करने के लिए सरकार को जल्द कोई न कोई कदम उठाना होगा। लिहाजा इसे जनता से वसूला जाएगा। उक्त अधिकारी ने बताया कि जीएसटी प्रणाली से पहले सिविल वर्क पर छह फीसदी की दर से सर्विस टैक्स लगता था, जो कि जीएसटी में बढ़ कर 18 फीसदी हो गया है लेकिन अच्छी बात यह है कि इसमें इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा मिल गई है इसलिए वैसे डेवलपरों के लिए आसानी हो गई है पर सरकारी क्षेत्र के इसका कोई लाभ नहीं है।
उन्होंने बताया कि सरकारी विभाग किसी चीज की बिक्री नहीं करती है। जब बिक्री नहीं होगी तो खरीद पर चुकाये गए कर का लाभ कैसे ले पाएंगे। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के सदस्य, पीपीपी, नीरज वर्मा का कहना है कि जीएसटी की वजह से उनकी परियोजनाओं की लागत पर चार से पांच फीसदी का असर पड़ा है। उनका कहना है कि अब एनएचएआई की परियोजनाओं में स्टील, सीमेंट आदि की उपयोग काफी बढ़ रहा है। जीएसटी से पहले सीमेंट या स्टील पर 12-14 फीसदी का केन्द्रीय उत्पाद शुल्क लगता था जबकि विभिन्न राज्यों में 10 से 15 फीसदी का वैल्यू एडेड टैक्स (वैट) लगता था। मतलब इस पर कुल मिला कर 22 से 29 फीसदी का कर चुकाना पड़ता था।
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