सभी परिसम्पत्तियों में से भूमि का किसी भी परिवार से लंबे समय से अंतरंग संबंध रहा है, चाहे वह निवास हो, खाद्य हो या जीविका, भूमि से इनके संबंध मजबूत हुए हैं। भूमि से किसानों का पुराना संबंध है और भारतीय समाज में इसे बहुमूल्य माना गया है। किसान कार्य-बल का सबसे बड़ा वर्ग है। 70% से अधिक किसान बड़े पैमाने पर स्व-रोज़गाररत हैं, जो भारत में 1.2 बिलियन से भी अधिक लोगों को खाद्य-सुरक्षा देते हैं। तथापि, नई सहस्त्राब्दि में, एक वर्धमान सार्वभौमिक बाजार स्थान के साथ ही भूमि भोजन दाता के साथ अंतरंग संबंध आयदाता के रूप में परिवर्तित हो रहे हैं। यह परिवर्तन सार्वभौमिक आर्थिक बलों द्वारा प्रेरित है, जिसका खेतों तथा छोटे किसानों पर व्यवस्थित तथा दूरगामी प्रभाव है।
भारत में 70% से भी अधिक किसान 0.7 एकड़ से भी कम भूमि के स्वामी हैं, इसलिए विश्व की तुलना में भारत में छोटे तथा सीमांत किसानों की संख्या सबसे अधिक है। उत्पादन की मांग होने के बावजूद, विखंडित भू-स्वामित्व बाजार आधारित निवेश को आकर्षित नहीं करता। विश्व के कई क्षेत्रों में किसानों ने ‘किबुज सिस्टम’ नामक सामुदायिक खेती के माध्यम से समस्या का समाधान किया है। इस प्रणाली में प्रतिस्पर्धी खेती के बदले सहकारी खेती निहित है जबकि भारत में मौजूदा आर्थिक स्थिति एवं मौजूदा भू-कानून उत्पादन में पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं के लिए भूमि को परस्पर मिलाने की अनुमति नहीं देते। इसके अतिरिक्त, पोषक तत्व खनन एवं उर्वरकों तथा विकास सहायक सामग्रियों के असंतुलित अनुप्रयोग के कारण मिट्टी के कम उपजाऊ होने से खेतों की पैदावार में गिरावट आई है। किसानों के द्वारा नई फसलें तथा किस्में उगाने से संबंधित ज्ञान प्रणाली में परिवर्तन आया है। तथापि, ज्ञान प्रदान करने वाली वर्तमान व्यवस्था किसानों तक नहीं पहुंची है। पोषक तत्व अनुप्रयोग के बारे में सामान्य सोच, खेत की विविधता, विशिष्टता तथा प्रबंधन इतिहास को अनदेखा करना और अपर्याप्त तथा असामयिक सूचना से मिट्टी के उपजाऊपन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और इसलिए फसल कम पैदा होती है। नई फसल के प्रति किसानों की रुचि बहुत अधिक नहीं है और साथ ही खेती में आने वाली समस्याओं का कोई स्पष्ट निदान नहीं किया जाता है। कभी-कभी वे इस तथ्य की उपेक्षा कर देते हैं कि वर्षों से पोषक तत्वों के असंतुलन से उत्पादकता में कमी आ सकती है और फसल में नाशक-जीवों तथा बीमारी लगने का खतरा हो सकता है। यद्यपि, इसका निदान प्राप्त करना किसी छोटे या सीमांत किसान के लिए भी कठिन नहीं है, किंतु नवीनतम फसल संवर्धन ज्ञान न होने के कारण, निश्चित रूप से उनके लिए औपचारिक कृषि विस्तार तथा मिट्टी जांच सेवाओं तक पहुँचना कठिन है।
यदि छोटे खेतों में किसानों को निर्वाह योग्य आय प्राप्त करनी है तो जब उत्पादन लागत युक्ति संगत एवं उत्पादकता बढ़ी हुई हो तो यह आवश्यक है कि वर्षों तक मिट्टी के संपूर्ण गुण बनाए रखे जाएं, दुर्भाग्यवश, भारत की कृषि विस्तार प्रणाली वर्षों से गिरी हुई और किसानों को सूचना तथा सलाह देने की आवश्यकताओं को पूरा करने में पूरी तरह से अप्रभावी रही है, विशेष रूप से छोटे एवं सीमांत किसानों की ऐसी औपचारिक खेत विस्तार सेवाओं तक पहुंच नहीं है, जो किसानों को खेत सलाह समर्थन देने के लिए मास-मीडिया सामाजिक मीडिया तथा निजी संचार साधनों का उपयोग करने में असमर्थ रहे हैं। पोषक तत्व खनन तथा उर्वरकों एवं विकास समर्थक साधनों के असंतुलित अनुप्रयोग से मिट्टी के उपजाऊपन पर विपरीत प्रभाव पड़ने के कारण खेती की पैदावार में कमी आई है। खेत की विविधता, विशिष्टता तथा प्रबंधन इतिहास की उपेक्षा करने से फसल पैदावार में गिरावट आती है। स्थल विशिष्ट पोषक तत्व प्रबंधन (एस.एस.एन.एम.) प्रक्रियाएं न केवल मिट्टी की उत्पादकता को बनाए रखने तथा बेहतर फसल देने में सहायता करती है, बल्कि मोबाइल फोन आधारित मिट्टी + सेवा किसानों को फसल चक्र एवं किस्म के अनुसार व्यक्तिगत सेल फोन के माध्यम से समय-समय पर पोषक तत्व प्रबंधन के बारे में सूचना प्राप्त करने में किसानों की सहायता करती है जिससे खेत की पैदावार बढ़ाने में सहायता मिलती है।
13 comments