लखनऊ: विज्ञान की सार्थकता तभी है जब वो आम आदमी के काम आए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि विज्ञान की गुणवत्ता पर कोई भी समझौता न हो। यह बात बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के पूर्व निदेशक पद्मभूषण प्रो॰ पद्मनाभन ने आज यहां केंद्रीय वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) अधीन केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान के वार्षिक दिवस समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए कही।
उन्होने विश्व के वैज्ञानिक जगत में प्राकृतिक उत्पादों के प्रति अनावश्यक पूर्वाग्रह का आरोप लगाते हुए कहा कि हल्दी में विद्यमान एक तत्व मलेरिया विशेषकर दिमागी मलेरिया के इलाज में रामबाण का काम कर सकता है जिसके लिए जरूरी शोध और वैश्विक मान्यता दिलाना आवश्यक है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने भाषण में नई दिल्ली स्थित निजी क्षेत्र की एक बड़ी सुगंधि तथा कृत्रिम स्वाद निर्माता कंपनी अल्ट्रा इंटरनेशनल के संस्थापक अध्यक्ष तथा प्रबंध निदेशक श्री संत सांगनेरिया ने केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना करते हुए संस्थान द्वारा उत्पादित जड़ी-बूटी युक्त सेनीटरी नेपकिंस जैसे अपने उत्पादों को बड़े पैमाने पर आम लोगों तक पहुंचाने का आग्रह किया। उन्होने संस्थान के पांच मेधावी शोधकर्ताओं को विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए एक-एक लाख रुपये के नकद वार्षिक पुरस्कार शुरू करने की घोषणा की। श्री सांगनेरिया ने कहा कि ये पुरस्कार पांच वर्ष तक दिये जाएंगे और पुरस्कार पाने वाले संस्थान के पांच में से दो शोधार्थी उनकी कंपनी द्वारा नामित किए जाएंगे।
समारोह में संस्थान के पिछले एक वर्ष के कार्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हुए संस्थान के निदेशक डॉ अनिल कुमार त्रिपाठी ने बताया कि संस्थान ने सूखाग्रस्त बुंदेलखंड के लिए सूखा बर्दाश्त कर सकने वाली लेमन ग्रास जैसी घासों की प्रजाति विकसित की। यह भी सुनिश्चित किया गया कि सचल मशीनों के जरिये डिस्टीलेशन की सुविधा प्रदान कर सुगंधित तेल की निकासी भी आसान हो सके।
उन्होने बताया कि जम्मू कश्मीर में एक परियोजना के अधीन बंजर पड़े काफी बड़े इलाके में सुगंध युक्त पौधों की खेती शुरू कराई गई। साथ ही डिस्टीलेशन की सुविधा भी प्रदान की गई। डॉ त्रिपाठी के अनुसार केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान एक ऐसी परियोजना पर काम कर रहा है जिसके अधीन देश भर में साढ़े पांच हजार से छह हजार हेक्टेयर क्षेत्र में चुनी हुई सुंगंध युक्त पादप प्रजातियों की खेती को बढ़ावा दिया जा सके। तमाम तरह की सुविधाओं से युक्त यह परियोजना देश में एक उदाहरण प्रस्तुत कर सकेगी तथा इसकी उत्प्रेरणा से भविष्य में देश भर में 50 से 60 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सुगंध युक्त पौधों की खेती कराई जा सकेगी।
डॉ त्रिपाठी ने बताया कि संस्थान ने अपने पिछले स्थापना दिवस पर जड़ी-बूटी से तैयार खांसी का सिरप प्रस्तुत किया जो बिना नींद लाए एलर्जी जनित खांसी में लाभ पहुंचाता है। उन्होने बताया कि जड़ी बूटी से तैयार मच्छर भगाने की दवा तैयार की गई है जो काफी पसंद की जा रही है। उत्तर पूर्व के क्षेत्रों में इस दवा में इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी बूटियों की खेती को बढ़ावा देने पर ध्यान दिया जा रहा है। केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान के निदेशक ने बताया पिछले एक वर्ष के दौरान संस्थान के वैज्ञानिकों के 95 शोध पत्र प्रकाशित हुए जबकि तीन पेटेंट दाखिल किए गए। उनके अनुसार संस्थान की ओर से खस, मेंथाल तथा अन्य सुगंधित तेल युक्त पौधों की चार नई प्रजातियां विकसित की गईं जबकि अनेक वैज्ञानिकों को उनके योगदान के लिए पुरस्कार तथा मान्यताएं प्रदान की गईं।
केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान के स्थापना दिवस समारोह में आज अनेक वैज्ञानिकों को शोध के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया। संस्थान द्वारा आयोजित औषधीय एवं सुगंधियुक्त पौधों की फोटो प्रतियोगिता के विजेताओं को भी पुरस्कृत किया गया। संस्थान द्वारा आज मुहासों को दूर करने के लिए जड़ी बूटी से तैयार दवा भी लांच की गई।
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