ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में चल रहे 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को पहला गोल्ड मिल गया है। वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने 48 किलो वर्ग में गोल्ड मेडल हासिल किया है। मीरा ने कुल 196 किलो भार उठाकर इतिहास रचा। इससे पहले साल 2014 ग्लास्गो कॉमनवेल्थ खेलों में चानू ने 48 किलो वर्ग में देश के लिए रजत पदक जीता था। चानू ने अपना ही 194 किग्रा का रिकॉर्ड तोड़ा और 196 किग्रा के साथ नया कॉमनवेल्थ रिकॉर्ड भी बना डाला।
चानू छोड़ना चाहती थीं वेटलिफ्टिंग
चानू ने स्नैच में 86 किग्रा और क्लीन एंड जर्क में 110 किग्रा वजन उठाकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया। चानू प्रैक्टिस में जो भार आसानी से उठा लिया करती थीं, वो ओलंपिक में नहीं उठा पाईं। उनके नाम के आगे लिखा था ‘डिड नॉट फिनिश’।
रियो ओलंपिक के बाद चानू कुछ समय के लिए डिप्रेशन में भी चली गईं थी। इस हार ने उन्हें अंदर तक तोड़ डाला था। इस असफलता के बाद एक बार तो चानू ने खेल को अलविदा कहने का मन बना लिया था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और पिछले साल जबरदस्त वापसी की।
जानें चानू के बारे में…
– 48 किलोग्राम के अपने वजन से करीब चार गुना ज्यादा वजन यानी 194 किलोग्राम उठाकर मीरा ने पिछले साल वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता था। पिछले 22 साल में ऐसा करने वाली मीराबाई चानू पहली भारतीय महिला बन गई थीं।
– 48 किलो का वजन बनाए रखने के लिए चानू ने उस दिन खाना भी नहीं खाया था। इस दिन की तैयारी के लिए चानू पिछले साल अपनी सगी बहन की शादी तक में नहीं गई थीं।
– 8 अगस्त 1994 को जन्मी और मणिपुर के एक छोटे से गांव में पली बढ़ी चानू बचपन से ही काफी काबिल रही हैं। उनका गांव इंफाल से कोई 200 किलोमीटर दूर था, जहां ज्यादा सुविधाएं भी मौजूद नहीं थी।
– उन दिनों मणिपुर की ही महिला वेटलिफ्टर कुंजुरानी देवी स्टार थीं और एथेंस ओलंपिक में खेलने गई थीं। कुंजुरानी से ही चानू ने प्रेरणा ली थी और वेटलिफ्टर बनने की ठान ली थी। उनकी जिद के आगे मां-बाप को भी हार माननी पड़ी। 2007 में जब प्रैक्टिस शुरू की तो पहले उनके पास लोहे का बार नहीं था तो वो बांस से ही प्रैक्टिस किया करती थीं।
– गांव में ट्रेनिंग सेंटर नहीं था तो 50-60 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग के लिए जाया करती थीं। डाइट में रोज दूध और चिकन चाहिए था, लेकिन एक आम परिवार की चानू के लिए वो मुमकिन न था। उन्होंने इसे भी आड़े नहीं आने दिया।