नई दिल्ली: भारत में शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है। हाल ही में जारी एसआरएस बुलेटिन के मुताबिक, वर्ष 2016 में भारत के आईएमआर में तीन अंकों (8 प्रतिशत) की गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2015 में जन्मे 1000 बच्चों में से 37 बच्चों की मृत्यु हो गई थी। यह आंकड़ा वर्ष 2016 में घटकर 34 के स्तर पर आ गया है। इससे पिछले वर्ष भारत के आईएमआर में दो अंकों की गिरावट दर्ज की गई थी। इतना ही नहीं, भारत में जन्मे कुल बच्चों की संख्या में भी उल्लेखनीय कमी देखने को मिली है, जो पहली बार घटकर 25 मिलियन के स्तर से नीचे आई है। वर्ष 2015 की तुलना में वर्ष 2016 के दौरान भारत में 90,000 कम नवजात शिशुओं की मृत्यु हुई। वर्ष 2015 में 9.3 लाख नवजात शिशुओं की मृत्यु होने का अनुमान है, जबकि वर्ष 2016 में 8.4 लाख नवजात शिशुओं की मृत्यु हुई थी।
एसआरएस बुलेटिन के मुताबिक नवजात बच्चे एवं बच्चियों की संख्या में अंतर निरंतर घटता जा रहा है। नवजात बच्चियों एवं बच्चों की मृत्यु दर में अंतर घटकर अब 10 फीसदी से भी कम रह गया है। इससे सरकार की ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना को काफी बढ़ावा मिला है।
उपर्युक्त आंकड़ों से यह पता चलता है कि मंत्रालय की रणनीतिक अवधारणा के सकारात्मक नतीजे अब आने शुरू हो गए हैं और इसके साथ ही इस मामले में खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों पर ध्यान केंद्रित करने के प्रयास भी अब सार्थक साबित हो रहे हैं। जहां तक सशक्त क्रियाशील समूह (ईएजी) वाले राज्यों का सवाल है, उत्तराखंड को छोड़ सभी राज्यों के आईएमआर में वर्ष 2015 की तुलना में कमी दर्ज की गई है। यह कमी बिहार में 4 अंकों, असम, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं झारखंड में 3-3 अंकों और छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं राजस्थान में 2-2 अंकों की रही है।
सरकार की विभिन्न पहलों के जरिये स्वास्थ्य सेवा कवरेज बढ़ाने के देशव्यापी प्रयासों के परिणामस्वरूप भी सिर्फ एक साल में ही ये उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल हुई हैं। सेवा प्रदान करने की व्यवस्था को मजबूत करना, गुणवत्ता का आश्वासन, आरएमएनसीएच+ए, मानव संसाधन एवं समुदाय संबंधी प्रक्रियाएं, सूचना एवं ज्ञान, दवाओं एवं निदान और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन इत्यादि भी इनमें शामिल हैं।
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