नई दिल्ली: राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कारों के विजेताओं को मैं हार्दिक बधाई देता हूँ और उनके योगदान की सराहना करता हूँ। मुझे ख़ुशी है कि पर्यटन के क्षेत्र में ‘स्वच्छता पुरस्कार’ भी दिया जा रहा है और इस क्षेत्र में स्वच्छता की महत्ता को बढ़ावा दिया जा रहा है। पर्यटन के विकास के लिए स्वच्छता अनिवार्य है। साथ ही, ‘स्वच्छ भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करके, हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को वर्ष 2019 में उनकी 150वीं जयंती पर सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे, यह मेरी आकांक्षा है।
यहाँ युवाओं का अच्छी संख्या में मौजूद होना खुशी की बात है। हमारे देश की 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम उम्र के युवाओं की है। हमें इस डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ लेना है। युवा पीढ़ी की कुशलताओं और प्रतिबद्धता के बल पर देश का भविष्य मजबूत होता है। मुझे विश्वास है कि यह पीढ़ी, पर्यटन सहित, भारत के समग्र विकास को तेज गति प्रदान करेगी।
देवियों और सज्जनों,
विश्व स्तर पर पर्यटन सबसे बड़े उद्योगों में से एक है। इसके विकास का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों की संख्या 1950 में ढाई करोड़ से बढ़ते हुए 2016 में 123 करोड़ तक पहुँच गई। पर्यटन और भ्रमण उद्योग का विश्व की जीडीपी में 10.2 प्रतिशत का योगदान है। ऐसा अनुमान है कि दुनिया का हर दसवां व्यक्ति पर्यटन उद्योग में काम करता है।
हमारे देश में भी एक बहुत बड़े वर्ग की रोजी-रोटी इसी उद्योग से जुड़ी हुई है। वर्ष 2016 के दौरान भारत में इस उद्योग का जीडीपी को कुल 9.6 प्रतिशत तथा कुल रोजगार को 9.3 प्रतिशत योगदान था। कम लागत से, अधिक लोगों के लिए, स्थायी रूप से रोजगार के अवसर पैदा करने, और गरीबी दूर करने में पर्यटन उद्योग बहुत अधिक योगदान कर सकता है। एक आकलन के अनुसार पर्यटन उद्योग में 10 लाख रूपये का निवेश करने से लगभग 90 लोगों को रोजगार मिलता है जबकि कृषि क्षेत्र में लगभग 45, और मैन्युफैक्चरिंग में लगभग 13 लोगों को।
हमारे देश में पर्यटन का तेजी से विकास करने के लिए सभी क्षेत्रों के लोगों को एक-जुट होकर काम करना चाहिए। उदाहरण के लिए सिविल एविएशन मिनिस्ट्री द्वारा छोटे शहरों को हवाई यात्रा से जोड़ने की जो पहल की गयी है, उससे उन शहरों में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। रेल सेवा की गुणवत्ता और पहुँच को बढाने से भी पर्यटन का विकास होगा। घरेलू पर्यटन के विकास के साथ-साथ, हमें एक बार फिर भारत को विश्व पर्यटन का आकर्षण केंद्र बनाना चाहिए।
हमारे देशवासी प्राचीन काल से ही अपने जन्मस्थानों से दूर के क्षेत्रों में भ्रमण करते रहे हैं। धर्म और संस्कृति ने इस भ्रमण और पर्यटन को व्यवस्थित रूप दिया। पिछले रविवार मुझे उत्तराखंड में केदारनाथ और बद्रीनाथ जाने का सौभाग्य मिला। वहां मेरे मन में यह सवाल उठा कि सुदूर दक्षिण में केरल के मैदानी इलाके में रहने वाले शंकराचार्य ने उत्तर में हिमालय की ऐसी ऊंचाइयों में मठ की स्थापना क्यों और कैसे की होगी? ऐसी मान्यता है कि केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिरों के निर्माण में शंकराचार्य का योगदान था। तमिलनाडु से उत्तराखंड तक और गुजरात से ओडिशा तक, इस देश को एक सूत्र में बाँधने वाले आदि-शंकराचार्य केवल एक आध्यात्मिक विभूति ही नहीं थे, वे राष्ट्र निर्माता भी थे। उन्होंने भारतवासियों द्वारा चारों दिशाओं में यात्रा की परंपरा की नींव डालकर देश की एकता का ताना-बाना बुना। इस प्रकार आदि-शंकराचार्य को कल्चरल या रिलीजस-टूरिज़म का आदि-पुरुष और भारत की एकता का अग्रदूत भी कहा जा सकता है।
शंकराचार्य से भी पहले, भगवान महावीर और भगवान बुद्ध ने अहिंसा, करुणा और ज्ञान के आधार पर हमारे समाज और देश का निर्माण किया और विश्व के अनेक देशों में उनकी प्रेरणा से मानव कल्याण और विश्व-बंधुत्व के आदर्शों को बल मिला। उनके अनुयायियों ने भारत सहित अनेक देशों में मनोरम साधना-स्थल, विहार और शिक्षण संस्थान विकसित किये। इस प्रकार प्राचीन भारत में पर्यटन के कई केंद्र बन गए थे।
आज हम एक नई ऊर्जा के साथ आवागमन की उन्ही परंपराओं को आधुनिक विश्व से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। इक्कीसवीं सदी के इस प्रयास में पर्यटन के आर्थिक पक्ष को बुनियादी महत्व देना चाहिए। समावेशी पर्यटन-विकास के जरिये समावेशी आर्थिक विकास को बल मिल सकता है। इसके लिए पर्यटन से समाज के हर तबके को जोड़ना चाहिए। हर भारतवासी को अपने-अपने स्तर पर पर्यटकों को अच्छा अनुभव प्रदान करने के लिए प्रयास करना चाहिए, जिससे पर्यटकों की संख्या तेजी से बढ़ सकती है।
जिन देशों में पर्यटन ही मुख्य व्यवसाय है, वहाँ प्रत्येक व्यक्ति पर्यटकों की प्रसन्नता के लिए सक्रिय रहता है। पर्यटन के प्रति जागरूक समाज में सरकार का काम होता है केवल दिशा और समुचित वातावरण प्रदान करना। सरकार ने ‘अतुल्य-भारत’ अभियान के तहत विदेशी तथा भारतीय पर्यटकों को स्थानीय परिवारों के साथ रहने का रास्ता सुझाया है और इसके लिए कुछ निर्देश दिए हैं। इससे पर्यटकों को स्थानीय भोजन और संस्कृति आदि का आत्मीय परिचय मिलता है। साथ ही मेजबान परिवारों को रोजगार मिलता है। इससे राष्ट्रीय एकता और अंतर्राष्ट्रीय भाई-चारे को भी बढ़ावा मिलता है। इस सन्दर्भ में, एक बार फिर मैं पुरस्कार विजेताओं के योगदान की सराहना करता हूँ।
सरकार नें पिछले तीन वर्षों के दौरान सरकार ने ‘आगमन पर वीजा’ की सुविधा सौ से अधिक देशों के पर्यटकों को उपलब्ध करा दी है, जो कि पहले गिने-चुने देशों के पर्यटकों को ही मिलती थी। इससे विदेशी पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हुई है।
हमारे देश में प्रकृति के वरदान, सांस्कृतिक विरासत और लोगों की प्रतिभा के बल पर मेडिकल-टूरिज़म, वेलनेस-टूरिज़म, हेरिटेज-टूरिज़म, कल्चरल-टूरिज़म, स्पिरिचुअल-टूरिज़म, वाइल्ड-लाइफ टूरिज़म, एडवेंचर-टूरिज़म और स्पोर्ट्स टूरिज्म, आदि के विकास की अपार संभावना है। इस क्षमता का उपयोग करने के लिए कुछ प्रशंसनीय प्रयास किये जा रहे हैं।
मुझे खुशी है कि आज ‘Incredible India 2.0 अभियान’ का शुभारम्भ हुआ है। पर्यटन मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संयुक्त प्रयास से आज ही शुरू किये गए ‘Adopt a Heritage Project’ में हमारी समृद्ध और विविधतापूर्ण धरोहर को आकर्षक और पर्यटकों के लिए सुविधाजनक बनाने की पर्याप्त क्षमता है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी से स्मारकों के रख-रखाव बढ़ावा मिलेगा। साथ ही मुझे आशा है कि ‘Incredible India वेबसाइट’, लोगों को पर्यटन से जोड़ने में उपयोगी सिद्ध होगी।
मैं एक बार फिर पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों के योगदान और प्रतिबद्धता के लिए अपनी सराहना व्यक्त करता हूँ। मैं आप सब की सफलता की कामना करते हुए यह आशा करता हूँ कि आप अपने प्रयासों में निरंतर लगे रहेंगे और पर्यटन उद्योग को नई ऊँचाइयों तक ले जायेंगे।
सराहनीय प्रदर्शन के लिए आज के पुरस्कार विजेता, संस्थानों में उच्चत्तम स्थान पाने वाले आज यहाँ उपस्थित सभी विद्यार्थी तथा पर्यटन उद्योग से जुड़े सभी stakeholders, अपने योगदान के द्वारा नेशन बिल्डर्स की भूमिका अदा कर रहे हैं तथा दूसरों को प्रेरणा दे रहे हैं। मुझे विश्वास है कि आप सब मिलकर भारत को विश्व में उसके प्रतिष्ठा के अनुरूप गौरवशाली स्थान दिलाने के लिए भरपूर योगदान देते रहेंगे।
13 comments