नई दिल्ली: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के भारतीय वन सेवा के 89 परिवीक्षाधीन अधिकारियों (2016 बैच) के एक समूह ने राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से आज राष्ट्रपति भवन में भेंट की।
वन सेवा अधिकारियों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि उन्होंने एक नेक पेशा का चुनाव किया है। भारतीय प्रकृति और संस्कृति के लिए वन हमेशा से ही विशेष रहे हैं। हमारी सभ्यता ने अपनी बौद्धिकता और आध्यात्मिकता की शक्ति वन से ही प्राप्त की है। इसलिए हमारे लिए वन मात्र संसाधन नहीं हैं बल्कि ये सांस्कृतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विरासत समेटे हुए हैं। अब इस विरासत को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी वन सेवा अधिकारियों पर है। पर्यावरण सुरक्षा और देश के सतत विकास से सामंजस्यता की जिम्मेदारी वन अधिकारियों पर निर्भर है।
महामहिम ने कहा कि पिछले कुछ दशकों से मानव जाति अपने अस्तित्व के खतरों के प्रति जागरूक हुई है जिनमें पर्यावरण प्रदूषण, वन क्षेत्र में कमी और सबसे बढ़कर वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण जलवायु परिवर्तन शामिल हैं। जटिल जलवायु परिवर्तन के मामलों में भारत वैश्विक नेतृत्व प्रदान कर रहा है। वन सेवा अधिकारियों को ऐसे तरीके और साधन ढूंढने होंगे जिससे प्राकृतिक वनों मे वृद्धि की जा सके तथा गैर वन क्षेत्रों में वृक्ष लगाए जा सकें। उन्होंने लोक सेवा का चुनाव किया है और वे पर्यावरण तथा पारिस्थितिक संरक्षण के विशेष क्षेत्र में देश के सैनिक हैं। राष्ट्रपति महोदय ने उन्हें प्रेरित करते हुए कहा कि उन्हें अपनी सेवा न्यायपूर्ण तरीके से, ईमानदारी से, बिना भय के तथा ऐसे तरीके से करनी चाहिए जिससे देश और सामान्य नागरिक दोनों ही लाभान्वित हो सकें।
राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि भारत दुनिया के सबसे तेज गति वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और हम लोगों ने कठिन लक्ष्य निर्धारित किए हैं। वन सेवा अधिकारियों को पर्यावरण संरक्षण की जरूरतों और विकास की आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करना होगा। उनका कार्य समस्याओं को सामने लाना नहीं बल्कि उनका समाधान प्रस्तुत करना है।