नई दिल्ली: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में, देश में एकल मेडिकल प्रवेश परीक्षा शुरू करने के बाद, अब स्नातक और स्नातकोत्तर स्तरों पर चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए राज्य स्तर पर सामान्य परामर्श के लिए प्रावधान किया है। एमसीआई के प्रासंगिक नियमों में किए गए संशोधनों के अनुसार, राज्य / संघ राज्य क्षेत्र के स्तर पर निर्दिष्ट प्राधिकरण राज्य में सभी मेडिकल शिक्षा संस्थानों के लिए सामान्य परामर्श करेगा, चाहे इसकी स्थापना केंद्र सरकार, राज्य सरकार, विश्वविद्यालय,मानद विश्वविद्यालय, ट्रस्ट, सोसाइटी, कंपनी, अल्पसंख्यक संस्थाएं या निगम द्वारा की गई हो।
इस कदम से नामांकन की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी और निजी कॉलेजों द्वारा लगाए गए कैपिटेशन शुल्क के प्रचलन को रोकने में भी मदद मिलेगी। इसके अलावा, छात्रों को एक ही राज्य में नामांकन के लिए कई एजेंसियों के पास आवेदन नहीं करना पड़ेगा।
एनईईटी यूजी 2016 के सीबीएसई द्वारा संचालित किए जाने के बाद , मंत्रालय ने राज्यों और अन्य हितधारकों के परामर्श से राज्यों को 09.08.2016 को एक परामर्शदात्री जारी किया था कि वे 2016-17 के सत्र के लिए एमबीबीएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए संयुक्त परामर्श आयोजित करने को वरीयता दे सकते हैं। मंत्रालय के द्ष्टांत पर, यूजीसी ने दिनांक 15.9.2016 के पत्र के माध्यम से सभी मानद विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया था कि वे या तो राज्य सरकारों / केन्द्र सरकार द्वारा या एनआईआईटी में प्राप्त अंकों के आधार पर अपनी एजेंसियों के माध्यम से
आयोजित समान पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए सामान्य परामर्श के भी हिस्सा होंगे।
2017-18 सत्र के लिए स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में नामांकन हेतु राज्य स्तर पर आम परामर्श के लिए परामर्शदात्री 05.12.2016 को दुहराई गई थी। परामर्शदात्री जारी की गई थी कि क्योंकि परामर्श को किसी नियम के तहत शामिल नहीं किया गया था और पूरी प्रवेश प्रक्रिया एक प्रशासनिक तंत्र के रूप में विकसित हुई थी। लेकिन अब स्नातक चिकित्सा शिक्षा विनियमन, 1997 और स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा विनियमन, 2000 में संशोधन संबंधी सूचनाओं के साथ, सामान्य परामर्श के लिए कानूनी प्रावधानों को सक्षम बना दिया गया है।
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