देहरादून: राजभवन में आयोजित टाॅपर्स कान्क्लेव 2017 के दूसरे दिन के प्रथम सत्र में उत्तराखण्ड तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. पी.के. गर्ग ने ‘‘स्मार्ट सिटी व शहरी विकास’’ विषय पर व गोविंद बल्लभ पंत कृषि व तकनीकी विश्वविद्यालय, पंतनगर के कुलपति डाॅ. जे.कुमार ने ‘‘पर्वतीय व ग्रामीण क्षेत्रों का आर्थिक विकास व लाभदायक पर्वतीय खेती ’’ विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किए। जबकि उत्तराखण्ड स्टेट काउंसिल फोर साईंस एंड टेक्नोलोजी के निदेशक डाॅ. राजेंद्र डोभाल ने ‘‘आर्थिक विकास में वैज्ञानिक नवाचारों की भूमिका’’ विषय पर प्रस्तुतिकरण दिया।राज्यपाल डाॅ. कृष्ण कांत पाल की उपस्थिति में राज्य के विश्वविद्यालयों से कान्क्लेव में प्रतिभाग कर रहे टापर्स व अन्य छात्र-छात्राओं को शहरी विकास व स्मार्ट सिटी के विविध पक्षों की जानकारी देते हुए उत्तराखण्ड तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. पी.के. गर्ग ने कहा कि स्मार्ट सिटी की अवधारणा में आईसीटी (इंफोरमेशन एंड कम्यूनिकेशन टेक्नोलोजी) सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है। शहरों की तेज गति से बढ़ती आबादी व आवश्यक संसाधनों की मांग व पूर्ति के गैप को देखते हुए शहरी विकास के लिए विशेष प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। इसी के मद्देनजर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 100 स्मार्ट सिटी विकसित किए जाने की बात कही है। केंद्र सरकार द्वारा इन शहरों को चयनित भी कर लिया गया है। स्मार्ट सिटी के मुख्य उद्देश्य शहरी लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना, मानवीय व सामाजिक पूंजी को विकसित करना, सूचना एवं संचार तकनीक का इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना, नागरिकों को गुणवत्तयुक्त सार्वजनिक सेवाएं समय पर उपलब्ध करवाना, जीवनस्तर में सुधार, ग्रीन कनसेप्ट व स्थायी विकास को बढ़ावा देना, शहरी समस्याओं का स्मार्ट हल, सिटीजन फ्रेंडली गवर्नेंस हैं। अपने प्रस्तुतिकरण में डा. गर्ग ने कहा कि भारत में एक सर्वे में 39 प्रतिशत लोगों ने ट्रेफिक मेनेजमेंट व 22 प्रतिशत लोगों ने वेस्ट मेनेजमेंट व सेनिटेशन को स्मार्ट सिटी के लिए महत्वपूर्ण माना। स्मार्ट सिटी में आईसीटी की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। योजना निर्माण, क्रियान्वयन, माॅनिटरिंग व फीडबैक में सूचना व संचार तकनीक का उपयोग किया जाना है। शहर के नागरिकों को विभिन्न प्रकार के प्रमाण पत्र, लाईसेंस, जनशिकायतों का निवारण आॅनलाईन सुनिश्चित होना स्मार्ट सिटी के लिए जरूरी है। शुद्ध पेयजल की आपूर्ति, सोलिड वेस्ट मेनेजमेंट, नागरिकों की सुरक्षा, सिटी ट्रांसपोर्ट, हेल्थकेयर, शिक्षा, गवर्नेंस में आईसीटी का उपयोग किया जाना है। पानी के ट्रीटमेंट के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाएगा। सेंसरों का प्रयोग करके पेयजल लाईनों व सीवरेज की लीकेज का पता लगाकर उसे ठीक किया जा सकता है। शहरों के कूड़े को एकत्र करने व उसे रिसाईकल किया जाना है। नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इंटेलिजेंस मेनेजमेंट सिस्टम, जीआईएस आधारित सिस्टम, सीसीटीवी का उपयोग किया जाता है। स्मार्ट पार्किंग, मास रेपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम के उपयोग से शहरों की एक बड़ी समस्या को दूर किया जा सकता है। क्वालिटी हेल्थकेयर के लिए जीआईएस आधारित इमरजेंसी सेवाएं, टेली मेडिकल एप्रोच को अपनाया जाता है। क्वालिटी एजुकेशन में भी तकनीक का प्रयोग किया जाता है। विश्व विद्यालयों को स्मार्ट कैम्पस के रूप में विकसित किया जाता है। डाॅ.गर्ग ने कहा कि भारत में शहरो को तीन वर्गों में बांटा गया है। 50 लाख से अधिक जनसंख्या के शहरों को मेगा सिटी, 10 लाख से 50 लाख तक जनसंख्या वाले शहरों को मिडसाईज सिटी व 10 लाख तक की जनसंख्या वाले शहरों को स्माॅल सिटी माना गया है। भारत में स्मार्ट सिटी के लिए रेट्रोफिटिंग, रिडेवलपमेंट व ग्रीनफील्ड, तीन अवधारणाएं अपनाई गई हैं। डाॅ. गर्ग ने देहरादून को स्मार्ट सिटी बनाने की योजना पर भी विस्तृत प्रकाश डाला। गोविंद बल्लभ पंत कृषि व तकनीकी विश्वविद्यालय, पंतनगर के कुलपति डाॅ. जे.कुमार ने पर्वतीय व ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक विकास व लाभदायक खेती पर प्रस्तुतिकरण दिया। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में जोतों के छोटे आकार को देखते हुए वन विलेज वन फार्म व एकीकृत खेती का अवधारणा को अपनाए जाने की सख्त जरूरत है। डाॅ.कुमार ने कहा कि उत्तराखण्ड की पर्वतीय खेती को किसानों के लिए लाभदायक बनाने के लिए एक साथ कई पक्षों पर काम करना होगा। पर्वतीय खेती के लिए क्षेत्रवार अलग-अलग तकनीक का उपयोग करना होगा। खेती की आधारिक संरचना के विकास के तहत कृषि उत्पादों का ट्रांसपोर्टेशन, मार्केटिंग, स्टोरेज, प्रोसेसिंग, कृषि उत्पादों का बीमा, किसानों को सही सूचना व संस्थागत साख की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। कृषि नीति सीमांत किसानो के पक्ष में होनी चाहिए। हरित क्रांति में इन्पुट इंटेंसिव तकनीक पर बल दिया गया है। इसकी लागत अधिक होती है। सीमांत व लघु किसान इससे उपेक्षित ही रहे। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे व सीमांत किसान अधिक हैं। उत्तराखण्ड में औसत जोत के आकार में कमी आई है। यहां लगभग 64 प्रतिशत किसान सीमांत व छोटे किसान हैं। इन्पुट इंटेंसिव की जगह इन्पुट एफिसिएंशी तकनीक का उपयोग करना होगा। अधिक मूल्य वाली फसलों को उगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना होगा। पशु प्रबंधन (बकरी पालन, दुग्ध उत्पादन, मुर्गीपालन, मत्स्य पालन) पर भी ध्यान देना होगा। उत्तराखण्ड स्टेट काउंसिल फोर साईंस एंड टेक्नोलोजी के निदेशक डाॅ. राजेंद्र डोभाल ने ‘‘आर्थिक विकास में वैज्ञानिक नवाचारों की भूमिका’’ विषय पर बड़े ही सरल शब्दों में प्रस्तुतिकरण दिया। डाॅ.डोभाल ने कहा कि वही अर्थव्यवस्था टिकी रह सकती है जहां नए-नए आविष्कार होते रहते हैं। हर नई तकनीक पुरानी तकनीक को बाहर कर देती है। इसलिए जरूरी है कि इनोवेशन अद्वितीय हों, अधिकाधिक लोगों के लिए फायदेमंद हो। डाॅ.डोभाल ने देश-विदेश के अनेक नवाचारों का उदाहरण देते हुए समझाया कि इन नवाचारों से कैसे क्रांतिकारी परिवर्तन आए। डाॅ.डोभाल ने डनलप, सेमी-कन्डक्टर, ग्राफिनी सहित भौतिक, रसायन सहित विज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र के विभिन्न आविष्कारों का उदाहरण दिया। उन्होंने छात्र-छात्राओं को इनोवेशन के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि इसमें दूसरे लोगों की आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ता है। परंतु धैर्य बनाए रखना जरूरी है। कोई इनोवेशन किए जाने पर उसका पेटेंट भी कराया जाना चाहिए। डाॅ. डोभाल ने बताया कि कुछ समय पूर्व 67 देशों का इनोवेशन इन्डेक्स जारी किया गया। भारत का इनोवेशन इन्डेक्स 35.5 था और इसका स्थान 60 था। परंतु संतोषजनक बात यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर यहां किए जाने वाले इनोवेशन का प्रभाव पड़ना प्रारम्भ हो गया है। उन्होंने कहा कि इसरो भारत में इनोवेशन का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। टाॅपर्स कान्क्लेव के दूसरे दिन के पहले सत्र में राज्यपाल डाॅ. कृष्ण कंात पाल भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम में उपस्थित छात्र-छात्राओं की सक्रिय भागीदारी रही। डाॅ. पीके गर्ग व डाॅ. जे.कुमार द्वारा दिए गए प्रस्तुतिकरण केा छात्र-छात्राओं ने ध्यान से सुना और विभिन्न प्रश्न भी पूछे। टापर्स ने भी आज के विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए।