नयी दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में भारत की शिक्षा संवर्द्धन सोसाइटी (ईपीएसआई) द्वारा प्रकाशित क्यूएस विश्व विश्वविद्यालय रैंकिंग का 2018 संस्करण प्राप्त किया।
इस अवसर पर, राष्ट्रपति महोदय ने ईपीएसआई से शिक्षा क्षेत्र में किए जा रहे अपने प्रयासों को जारी रखने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि वह यह जानकर प्रसन्न हैं कि भारत के तीन संस्थानों- आईआईटी दिल्ली एवं आईआईएससी बंगलूरु तथा आईआईटी बांबे के प्रतिष्ठित शीर्ष 200 में स्थान पाने में सफल रहे हैं। इनमें से आईआईटी दिल्ली एवं आईआईएससी बंगलूरु पहले से ही शीर्ष 200 में स्थान प्राप्त कर चुके हैं जबकि आईआईटी बांबे इस प्रतिष्ठित में प्रवेश करने वाला नवीनतम संस्थान है। आईआईएससी बंगलूरु को अब साइटेशन पर फैकल्टी के लिए वैश्विक रूप से छठा स्थान दिया जा रहा है।
राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि जहां बुनियादी ढांचे के लिहाज से उच्चतर शिक्षा क्षेत्र में उल्लेखनीय विस्तार हुआ है, कई संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता अभी भी चिंता की बात बनी हुई है। उन्होंने कहा कि प्राचीन समय में, हमारे पास शिक्षा के नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वलाभी, सोमपुरा एवं ओदांतपुरी जैसे विख्यात स्थान थे जिनका ईसा पूर्व छठी शताब्दी से लेकर 1800 वर्षों तक विश्व उच्चतर शिक्षा प्रणाली पर दबदबा था। दुनिया भर के विद्वान ज्ञान की खोज में शिक्षा के इन केंद्रों तक खींचे चले आते थे। आज की स्थिति इसके बिल्कुल उलट है। भारत के कई प्रतिभाशाली छात्र विदेशों के विश्वविद्यालयों से उच्चलर शिक्षा ग्रहण करते हैं। शिक्षा के हमारे उच्चतर संस्थान विश्व स्तरीय विद्वान पैदा करने में सक्षम हैं लेकिन विदेशी विश्वविद्यालय इसमें बाजी मार ले जाते हैं।
राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि उच्चतर शिक्षा के केंद्रीय संस्थानों में विजिटर के रूप में विश्वविद्यालयों की उनकी यात्रा के दौरान वह विश्व विश्वविद्यालय रैंकिंग के प्रदर्शन को लेकर चिंता व्यक्त करते रहे हैं।