लखनऊ: मुंबई और दूसरे शहरों की तर्ज पर लखनऊ में भी गुप्त कलासेज शुरू करने पर कडा रुख व्यक्त करते हुए मौलाना सैयद कलबे जवाद नकवी ने कहा कि दूसरे शहरों की तर्ज पर अब लखनऊ में भी कुछ युवाओं को जमा करके गुप्त कलासेज शुरू हो गए हैं। इन कलासेज में जो शिक्षा दी जाती है उसके लिए छात्रों से कसम ली जाती है कि वहाँ दी जाने वाली शिक्षा के संबंध में अपने माता-पिता से भी बात नहीं करेंगे।इन कलासेज में शिक्षण देने वाले शिक्षकों की कुछ विडियो क्लिप्स सामने आई हैं, इन का मुख्य लक्ष्य मरजियत की आलोचना, ओलमा का विरोध करना,नौजावानें के जहनों में जहर भरना और शरीअत के मूल मान्यताओं एवं अकाएद के खिलाफ नौजवानों को आमादा करना है। एक क्लिप में शिक्षण देने वाला व्यक्ति मरजियत का मजाक उड़ा रहा है और किलास में मौजूद युवा हंस रहे हैं ,यह स्थिति चिंताजनक है।यह लोग पहले युवाओं के जहन को मरजियत और ओलमा के खिलाफ तयार करते हैं उसके बाद खुल कर अपने विचार व्यक्त करते है। नौजवानों का हंसना बताता है कि कैसे युवाओं के मन में ओलमाये हक्क्, और मरजियत के खिलाफ जहर भरा जा रहा है।
मौलाना ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि जिन इलाकों में यह कलासेज आयोजित हो रहे हैं वहाँ रहने वालों की शरई जिम्मेदारी है कि उन कलासेज में दी जाने वाली शिक्षा पर नजर रखें। मौलाना ने व्याख्या करते हुए कहा कि उन कलासेज में शिक्षण देने वाले लोग मुंबई या अन्य शहरों से विमान द्वारा आते हैं और शिक्षण देकर वापस चले जाते है,आखिर उनके पास इतना पैसा कहां से आ रहा है? जब उनसे पूछा जाता है कि आप करते क्या हैं तो वे बताते हैं कि एक स्कूल में शिक्षक है, इन कलासेज का संरक्षण एक मौलाना कर रहे हैं,वे एक बार मेरे पास आये थे ताकि वे कलासेज को लखनऊ में भी आयोजित कर सकें। मैनें उनसे सवाल किया था कि आप केवल मुझे इतना बता दें कि एक स्कूल का शिक्षक इन कलासेज में शिक्षण देने के लिए विमान द्वारा आता जाता है जिसका खर्च बीस पच्चीस हजार रुपये होता है क्या यह संभव है कि एक स्कूल का शिक्षक अपनी जेब से हर महीने इतना खर्च कर सके? इसलिए आप लोग सावधान रहें, इन कलासेज को आयोजित करने के लिए पहले जहन साजी की जाती है और बड़ी बड़ी रकमें खर्च की जाता है, बिकने वालों की कमी नहीं है। जब तक खुलआम उनके कलासेज आयोजित न हों किसी भी मोहल्ले में इन कलासेज का आयोजित करने की अनुमति न दी जाए। अगर कोई पैसा लेकर अपने घर या किसी जगह कलासेज को आयोजित करवाता है तो उन कलासेज मंे जाकर देखें कि वह क्या शिक्षा दे रहे। मौलाना ने कहा कि जो किताबें पाठ्यक्रम के नाम पर वे दिखाते हैं वास्तव मंे उन किताबों से एक शब्द भी नहीं पढ़ाया जाता है। उनका टीचर अपने नोट्स लेकर आता है और उन्हीं के आधार पर शिक्षा देता है, इसलिए इन कलासेज से सावधानी बरतें और अपने बच्चों पर भी नजर रखें के कही वों इन कलासेज के चक्कर मंे ना आ जायें।